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________________ -१५५] अण्णिगेरिका लेख १११ यह शिलालेख अन्तिम रूपसे मन् ११५० के करीव लिखा गया होगा।] [ए० इ० १५ पृ० ३३७ ] अण्णिगेरि (मैसूर) शक ९९३-६४ = सन् १०७१-७२, कन्नड [यह लेख अक्षरश. गावरवाड लेखके पहले दो भागो-जैसा ही हैसिर्फ चार लोक इसमें अविक है। यथा-(१) मगलाचरणमें-जगत्त्रितयनाथाय नमो जन्मप्रमापिने। नयप्रमाणवाग्रश्मिध्वस्तध्वान्ताय गान्तये ॥ (२) महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसके वर्णनमें-मले यंतो (ह) लतुलिदं मलेयोल् मामलेव मलेपरं मग्गिसिदं मलेयेलु कोपिर्दुमनलेद जलनिधियोलें प्रतापियो लक्ष्म ॥ (३-४) गुणकीति पण्डितको गिष्य परम्पराके वर्णनमेंकृतकृत्यरभवनन्दिगल तनूजर सकलचन्द्रसिद्धान्तिकरप्रतिमर् सर्वागमलान्वितगण्डविमुक्तदेवरा मुनिशिष्यर् ।। एनिसिद गण्डविमुक्तर तनूभवर चरणकरणपदविद्यापावन मन्त्रवाददो त्रिभुवनचन्द्रमुनीन्द्ररल्ते बुवजनवन्धर् ।। इससे अभयनन्दि - सकलचन्द्र - गण्डविमुक्त - त्रिभुवनचन्द्र इस परम्परा का पता चलता है। इस लेखमें गावरवाड लेखके अन्तिम दो भाग नहीं है । अतः प्रतीत होता है कि यह शक ९९४ में ही खुदवाया गया होगा।] [ए० ई० १५ पृ० ३४७ ] - हैदरावाद म्युजियम (आन्ध्र ) सं० ११ (२) ८ = सन् १०७२, संस्कृत नागरी [इस मूर्तिलेखमें वीतरागको उपासिका रावदेवी-द्वारा देवागना तथा लोणीपतिकी मूर्तियोकी स्थापना किये जानेका उल्लेख है । समय संवत्
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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