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________________ -१५.] गावरवाडका लेख १०९ ८६ य श्रीकलिदेवस्वामिजिनश्रीपादार्चनेगे कपूरकुंकुमश्रीगंधसहित ___यष्टविधार्चनेगे ८. कोड केयियरकेरेयिं मूडलु मत्तर पन्नेरडम याचार्य देवपुत्रि करुं सर्वावाधप66 रिहारवागि प्रतिपालिपरु ॥ दक्षिण ऐयावोलेयुमप्प प्रामादि वाडक्के श्रीगंगाडि८९ य बसदिय पुरट मर्यादय धले भूवनेटु गेणु हस्त वेगोल्लदंगे वृत्ति सल्लदु । वर्धतां जिनशा९. सनं ॥ ९. गंगासागरयमुनासंगमदोलु वाणारसि गयेयेम्बी तीर्थगलोलात्म कुलद्विजपुंगवगोकुलमनलिटरिन्तिदनलि९२ दरु ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुंधरा । षष्ठिवर्षसहस्राणि विष्टायां जायते कृमि.॥ ९३ याचार्यर येटिंगनागि बेसकेस्टुव वृत्ति कुरिवर केते ९४ न्दु ॥ याचार्यरु खुड गवुडन हेसरिटक्के मूगवाड रन'" ९५ लद सीमेयलु कोड वृत्ति मसरु वॉदु यदु होलगेरे । [ इस बृहत् शिलालेखके चार भाग है। पहले भागमें (पक्ति१-४३) अण्णिगेरे नगरके गंगाडि जिनमन्दिरका वर्णन है । यह मन्दिर रेवकनिमेडिके पति बूतुगके स्मरणार्थ बेल्बल प्रदेशके शासक गगपेडिने बनबाया था तथा उसने उसे मूडगेरी, गुम्मूंगोल, इट्टगे और गावरिवाड ये चार गांव दान दिये थे। यह दान मलसघनदिसंघ-बलगार गणके गुणकीर्ति पण्डितको दिया गया था। गणकीतिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी-गग १ रेकनिर्मडि राष्ट्रकट सवादकृष्ण (तृतीय) की बहन थी जो गग राजा ऋतुगको न्याही गयी थी। गंग पैाडि इनके पुत्र मारसिंह (तृतीय) (सन् १६०७४) अथवा पौत्र रानमल्ल (चतुर्थ ) होंगे।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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