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________________ १०२ जैनशिलालेख-सग्रह [१५३ सोरटूर (मैसूर) शक ९९३ = सन् १०७१, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनकमल्लदेव (सोमेश्वर २) के समय माघ शु० १, रविवार, शक ९९३, विरोधकृत सवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था ( यहाँ माघ स्पष्टत गलत है जो पोप होना चाहिए । ) उक्त समय महाप्रधान सेनाधिपति कडितवेगडे दण्डनायक बलदेवस्य-द्वारा सरटबुर ग्राममे स्थित वलदेवजिनालयके लिए कुछ भूमि अर्पण की गई थी। बलदेवय्यके पिता गग कुलके अग्गलदेव थे, माता गोज्जिकब्बे थी तथा उसके ज्येष्ठ बन्धुका नाम वेल्देव था। इस दानको व्यवस्थापिका हुलियब्याज्जिके सूरस्तगण-चित्रकूटान्वयके सिरिणदिपण्डितकी शिष्या थी। उक्त मन्दिरको सरटबुरके दो-सौ महाजनोने भी कुछ भूमि, तेलपानी तथा घर अर्पण किये थे। सिरिणन्दिपण्डितकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है चंदणदि - दावणदि - सकलचन्द्र - कनकनदि - सिरिणदि । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित] [सा० इ० इ० ११ पृ० १०७] १५४ गावरवाड (जि० धारवाड, मैसूर) शक ९९३-९४ = सन् १०७१-७२, कन्नड १ श्रीमत्परमगमीरस्यावादामोधलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन ॥ • स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम महाराजाधिराज परमे श्वर परममट्टारक स३ स्याश्रयकुलतिलक चालुक्यामरण श्रीमदभुवनैकमल्लदेवर विजय राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाच
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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