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________________ १०१ -१५२] मत्ताबारका लेस २८ मनेगल माढिसि रिपिहल्लियेंदु पेसरनिहु २९ मनेहेरे मादुवेढरे अरटिंगे तौटे सु३० रंदु कवर्ते सेसे भोसगे मनकरे कूट क३१ कन्दि वीरवण कोढतिवण कत्तरिवण अडकलु३२ वण हडवलेय हदियराय कुवर वि३३ हि कमर विहि यिवोलगागि हलवु महिम३४ गलं विनयादिस्यहोरपलदेवर् आचद्रार्क३५ तारंवरं सलो ॥ इन्ती धर्मटोलावनानुं तप्पिट३६ वं गगेयलु गंगेयं कोंदु तिन्हें लिंगालि३७ पंगेनिस्थानवे कटेगळ स्यानं जागवल्ल ३८ मत्तावुर हल्लिय गावुण्ड तानिइक्के पे३९ न्दे नितुदृढक्के देवगृह ४० वह नानवक-होलहा-घागि ॥ ४००००० [ यह लेख होयमल वाके राजा विनयादित्यके समय वैशाख शु० १३, बृहस्पतिवार, शक ९९१ पिंगल संवत्सरके दिन लिखा गया था। मत्तवूर ग्रामके लिए एक नहर वनवायी थी तब राजा विनयादित्य वहाँ गये थे। इस ग्रामको वसदि ग्रामके वाहर एक पहाडीपर थी। उसे देखकर राजाने ग्रामीणोस पूछा कि ग्राममें वसदि क्यो नही है ? इसपर माणिकसेट्टिने कहा कि ग्राममें वमदि वनानेकी हमारी इच्छा है किन्तु हम गरीव है। तव रानाने ग्राममें बसदि बनवाकर नाडलि ग्रामके कुछ करोका उत्पन्न उमे दान दिया। माणिकसेट्टि, राजगावुण्ड तथा मुहगावुण्डने भी वसदिके लिए कुछ भूमि दान दी।] [ए. रि० मै० १९३२ पृ० १७१ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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