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________________ अनुवाद- जैन-शिलालेख संग्रह देवपुत्र हुविष्कके .. .. वर्षमें ... [El ll, n° XIV n' 25] मथुरा-प्राकृत । [वर्ष ३. हुविष्ककाल] अ-स ३० १ व १ दि १० अस्म क्षुणे ब १ यातो गणतो [अर्य्य वेरितो शाखनो ठा] णियातो कुलातो वह [ तो] । कुटुम्बिणिये [ ग्र] ह २ [अर्य]-दासस्य निवर्तना बुद्धिस्य वितु देविलस्य शिरिये दाण । [ऊपरके शिलालेखका ठीक क्रम, जी वूल्हरकी सम्मतिमे, इस तरह है.-] [कोटियानो गण [तो ] अर्य्यवेरितो शाखतो ठगणियातो कुलातो वह [ तो ] (१) [गणिस्य ] अर्थ [गो] दासस्य निवर्तना बुद्धिस्य धितु देविलस्य कुटुम्बिणिये ग्रहशिरिये दाण ॥ अनुवाद-३ वे वर्षकी वर्षाऋतुके पहले महीनेके १० वें दिन, बुद्धिकी पुत्री (तथा) देविलकी पत्नी गृहशिरि (गृहश्री )ने, कोहिय गण, अयं वेरि (आर्य वज्री) शाखा, ठाणिय (स्थानीय) कुलके [गणी] आर्य गोदासके आदेशसे दान किया। [EI, II, n° XIV, n° 15]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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