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________________ मथुराके लेख ४१ . . . . . .। मथुरा-प्राकृत। [हुविष्क काल ] वर्ष ३२ अ. १. सिद्धम् । सब [स] रे ३० २ हेमन्तमासे ४ दिवसे २ वारणानो गणा यातो [कु] ०?' २. .. .......... ब. १. -णि अर्यनन्दिकस्य निर्वर्तना जितामित्रय[ स्तुि] नन्दिस्य धीतु बुद्धिस्य कुटुम्बिनिये प्रा तारिकत्य-नी f - प्य मातु गन्धिकस्य अरहन्नप्रतिमा सर्वतोभद्रिका । अनुवाद-सिद्धि हो । ३२ वें वर्षकी शीतऋतुके चौथे महीनेके दूसरे दिन, रितुनन्दि (ऋतुनन्दि) की पुत्री, बुद्धिकी पत्री तथा गंधिककी माँ "जितामित्राने, वारण गण "य कुल "मर्य-नन्दिक (आर्यनन्दिक) के आदेशसे एक अर्हन्तकी सर्वतोभद्रिका प्रतिमाकी प्रतिष्ठापना की। ___[EI, II, n° XIV, n° 16] | मथुरा-प्राकृत । [हुविक वर्ष ३५] अ. १. [सिद्ध ] । स ३० [५] व ३ दि १० अस्य [i] पूर्वाया कोट्टियातो गणतो [स्थानि] या [ तो ] कु-- ___व. १. वइरातो ग [] ख []तो गिरिकातो मभोकातो अर्यचलदिनस्य शिशिनि कुमरमिति] • सभवत "प्रातारिकस्य' पढ़ना १ सभवत 'गणानो हट्टियानो' पड़ो। चाहिये। शि०३
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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