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________________ जैन-शिलालेख संग्रह श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् ।। खस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्री पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारक सत्याश्रय-कुळतिळक चालुक्याभरण श्रीमत् त्रिभुवनमल्ल देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रावतारम्बरं सलत्तमिरे ॥ तत्पादपद्मोपजीवि ॥ खस्ति समधिगत-पञ्च-महा-शब्द महासामन्ताधिपति महा-प्रचण्ड-दण्डनायक विबुधबर-दायक सुजन-प्रसन्न नुडिदु मत्तेन गोत्र-पवित्र पराङ्गना-पुत्र...... ..."सोत्तुगनय्यन-सिङ्ग नामादि-समस्त-प्रशस्ति-सहित श्री .... वेडे मने-वेग्गडे-दण्डनायकननन्तपाळय्यं गजगण्ड-अरुनूरुमं वनवासे ......"मुम सप्ताद्ध-लक्ष्म(क्ष)यच्छ-पन्नाय-मुम पडेदु सुख-संकथा-विनोददि... तत्पादपद्मोपजीवि ॥ श्री-वनिता-कुच-सम्मृतपीवर-वक्ष-स्थळ लसद्गुण-मणी · । .............। .....'सकळ-विभु (बु) ध-जनता".""॥ आ-समस्त-गुण-गणाभरणनु विबुध-जन-पर... ... .."विळसितजगद्-वळय · वनु रण-रङ्ग भैरवन सकळ सु-कवि-जन-क"......." वीर-लक्ष्मी-विळासनुमनन्तपाळ-प्रसादनुदिताधिकार-लक्ष्मी-विळासनु" - " "[गोविन्दरसं वनवासे-पन्नि»सिरमुम मेल्पट्टेय वड्डरावुळमु........."नोददिं प्रतिपाठिसुत्तमिरे ॥ .... - श्रियं निज-भुजबळदिम् । " दायाद बळ ...................। --
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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