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________________ सण्डका लेख .... 00 .....न-1 जेय रिपु- नृप-पयोज -सोम सोमम् ॥ आनेग............गळ महा . वैयोगेव वोलानत -रिपुयोगेद..... महीपति-प्रतिम प्रताप-निळ्य निज-सन्ततिगोसुगे पुढे रिपु ............. पुदि सोवरस || ... जमदनण्मिनार्ष्णेने कट्टायदे चलढोळोदविदुन्नति... रेम् पुट्टिदर ॥ नभम ३६१ शरणे मगेन्न देवदेमगे बेसनाबुदु बुद्धियेन्नम् । वरिसि नितान्तमेरिसिद विल्लव-वृत्ति ने पे- 1 डिर् केलदोळ् केळदु वीरुव विडे वीरुवधिक चैरि-भूपरनातनत्तर मरुळ तण्डम नोडने सोम-भूमिपम् ॥ किं कल्पद्रुम-वल्लरी किमु रतिः शृङ्गार - भङ्गी - गुरो. किं वा चान्द्रमसी कला विगलिता लावण्य-पुण्या दिवः । सम्यग्दर्शन- रेवती किमु परा सोमाविका राजते राज्ञी सा वनवासि - सोम-नृपतेर्जाता मनोवल्लभा ॥ लोक ॥ क्षीर-सिन्धोर्य्यया लक्ष्मीहिंमागोरिव दीधितिः । तथा तयोस्तुते जाते जिन - शासन-देवते ॥ पूर्वं वीराम्बिका जाता ततोऽजन्युदयाम्बिका । इति भेद तयोर्म्मन्ये सद् गुणैस्समता द्वयोः ॥ कि देवेन्द्र - विमान एप किमुत श्री नागराजाश्रयः कि हेमाचल-शैल इत्यनुदिनं शङ्का दधान जने । निशेषावनिपाल - मौलि- विलसन्- माणिक्य- मालाश्चितम् । भाट्यत्युन्नतिमज्जिनेन्द्र-भवन ताभ्या विनिर्मापितम् ॥ तोडरे तोडङ्क मच्चरिसे गण्टल सिल्किद- गाळ बुक्के मार- ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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