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________________ जैन-शिलालेख संग्रह जयकीर्ति-मुनि सूर्यके ममान थे । ये अनेक उपवास और 'चान्द्रायण' व्रत करनेमें विख्यात थे। यहाँ दशरथके पुत्र, लक्ष्मणके बड़े भाई, मीताके पति, इक्ष्वाकुकुलोरपत्र रामके द्वारा प्रतिष्ठित टेसिग-गणकी ६४ बसदियाँ हैं। . बन्द-तीर्थकी बमदिको जिसे पहले रामने बनवाया था और जिसको गहोने दान किया था, चङ्गाल्ववशी यादवीय राजेन्द्रचोक नन्नि-चङ्गाबदेवने फिरसे बनवाया। इम पनसोगेमें देसिग-गणके होत्तरी गच्छकी १ वसदियों, और तलकावेरीकी बसदियोंका वही समुदाय मालिक है।] [EC, IV, Yedatore t), ao 26] २४१ चिक हनसोगे--कन्नड़ [विना काल-निर्देशका, पर सम्भवत लगभग ११०० ई० ? ] [चिक्क-हनसोगेमें, नेमीश्वर बस्तिके दरवाजे के ऊपर] श्रीमद्-देसिग-गण पुस्तक-गच्छद श्रीधर-देवर शिष्यरेळाचार्यरखर शिष्यद्दोमनन्दि भट्टारकरवर साधर्मिगळ् चन्द्रकीर्ति-भट्टारकरखर शिष्यदिवाकरणन्दि-सिद्धान्तदेवरवर शिष्यर्चान्द्रायणी देवापरनामधेयरप श्रीमजयकीर्ति देवरादियागा-समुदाय-मुख्यमी-बसदिगळेलवर्कमासमुदायद वशमल्लदवरना-समुदायमि? निर्दोडिसि पोरैमडिसि कळेबुदु । रामखामि बिट्ट परमेश्वर-दत्तिगे तोल्लडियिन्द बडगण तुम्विन नीर् वरिद नेलन विक्रमादित्यं विट्ठ १८ गेण कोलिन्द १५०० कम्म मोदलेरियल वेजिरिंगट्टद केळगे आ-कोलि(न्ट) २५० कम्म मण्ण तोण्टक्के चङ्गावं मदुरनहल्लियुमनल्लि ५००, कम्म मण्ण"". .
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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