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________________ चिक्क-हनसोगेका लेख ३५७ प्रमादि- संवत्सरद फाल्गुण-सुद्ध-पञ्चमी आदिवारदन्दु य पाळि मूळपरिग्रहं चरियल ३० गद्याण " 'चन *********** ****** [ जिनशासनकी प्रशंसा । कोण्डकुन्दान्वयमें पनसोगे-निवासी मुनियों में प्रधान पूर्णचन्द्र मुनि थे। उनके शिष्य दामनन्दि-मुनीन्द्र थे, उनके शिष्य श्रीधराचार्य थे; उनके शिष्य मलधारी देव थे; उनके पुत्र चन्द्रकीर्त्तिव्रती थे । " मूलसंघ, देशिगण तथा पुस्तकगच्छकी दिवाकरनन्दि सिद्धान्त देवकी शिष्या, बेसववे-गन्विने" के करनेके लिये ३० गद्याण दिये । ] [ EC, IV, Yedatore tl, n' 24 ] २४० चिक्क-हन सोगे-कन्नड़ [ विना काल-निर्देशका, पर सम्भवत लगभग ११०० ई० ] [चिव-इनसोगे में, शान्तीश्वर वस्तिके दरवाजेके ऊपर ] श्रीमूलसङ्घद टेसिंग-गणद होत्तगे - गच्छद समुदाय मुख्यते रामस्वामि विपरमेश्वर - दत्तिगे ॥ उपवास-प्रोन्नत-विधि - | युपवासानेक चार - चान्द्रायणदिन्दर्प-मद- जयकीर्ति-मुनि- । प्रवरं श्री- पुस्तकान्त्रयाम्बुजसूर्य । दशरथसुतनु लक्ष्मणाग्रजनु सीता वल्लभनु इक्ष्वाकु कुलजनुमप्प रामन प्रतिष्ठे देसिग - गणद बसदि इल्लि ६४ रामम्र्म्माडे गङ्गपडि सलिसे वृन्द-तीर्थद-वसदिय यादवरप्प चनाकवरोळगे श्री राजेन्द्र-चोळ-नन्नि चाळव-देवर पुनर्नवं माडिदरीपनसोगेय देसि गणद होत्तगे गच्छद बसदि ४ के तले - कावेरिय वंसदिगळ्गु तत्समुदायमुख्य [ रामस्वामीके छोडे हुए (?) परमेश्वर-प्रदत्त (१) दानका प्रधान मूलसङ्घके देशी गणके होत्तगे गच्छका समुदाय है । पुस्तकान्वयरूपी कमलके लिये .......
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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