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________________ अङ्गडिका लेख १७८ अगडि - कन्नड़ - भग्न [ विना काल-निर्देशका, पर संभवत: लगभग १०४० ( ? ) ई० ( ल० राइस) 1 ] [ अगडि ( गोणीबीड परगना ) में, हरमक्कि दोड़-उडवेमें पाषाणपर ] .........राज्यं गेये... द्रविणान्वयद मूल-सं पण्डित ......तु तर्काच्चाळितामा.... जलघि - यशो ... कुतूहल... शय वज्रपाणि पण्डित-चरण ॥ एनिसि सले गङ्गवाडिय । मुनिवररिं राजमल्ल- भूपालकनीमनु-नीति-मार्गनभयं । जन-पति-सम्यक्त्व-मार नृपतिय गुरुगळ् ॥ वृ ॥ इरदापन्निगङ्गळि तळ... व्यत्त हो....। दुरितारण्यमनेय्दे खुट्टु सोसवृरोळ् विळ्द कालान्तदोऴ् । रे सन्यास - विधानादं मुडिपि पूज्य वज्रपाणि त्रतीश्वररत्युत्तम-मुक्तिय पडेदरेम् पुण्यक्कवर नो... || ॥ ********** ( बायीं ओर ) रविकीर्तिमुनीन्द्रनेन्दु पट्टळिये पेळदेने कल्नेले - देवर साहसोक्तियम् ॥ श्रीमत् - कल्नेले - देवर्त्तम्म गुरुगळगे निपिधिगेयं माडिसिदर मङ्गळ .. १७९ 1 (बया ना ( राजपूताना ) - संस्कृत [स० ११०० = १०४४ ई ] [ 14, XIV, [विणान्चय, मूलसंघके पण्डितके शिष्य वज्रपाणि पण्डितके चरणोसे जब राज्य कर रहा था - गङ्गवा डिके मुनियोंमें प्रसिद्ध राजा राजमल्ल था । इसके गुरु वज्रपाणि व्रतीश्वरने सोसवूर में अपना जीवन व्यतीतकर अन्तमे संन्यास-मरण धारण किया और उन्हींका यह स्मारक है । ] [ EC, VI, Mūdgere tl, 18] १ यह शिलालेख श्वेताम्बर सम्प्रदायका है । २१९ ...... n 9300 8-10 n° 151, t & a ]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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