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________________ जैन - शिलालेख संग्रह १८० दोड़-कणगालु - कन्नड़ [ वर्ष तारण = १०४४ है ० ? ( ल० राइस) । ] [ दोड-कणगालुमे, गौडके खेतमें एक दूसरे पाषाणपर ] श्री-मूलसंघ देशिय गण पुस्तक-गच्छ कोण्डकुन्दान्वय इडुळेश्वरद बळिय... "शुभचन्द्र-देवर प्रियाम - शिष्यरुमप्प प्रभाचन्द्र- देवर निसिधि तारण संवत्सर - चैत्र-शुद्ध- पञ्चमी- शुक्रवारदन्दु मुक्तरादरु । २२० [ श्री-मूल संघ देसिय-गण पुस्तक- गच्छ कोण्डकुन्दान्वय और इङ्गलेश्वर बलिके... शुभचन्द्र देवके प्रिय ज्येष्ठ शिष्य प्रभाचन्द्र देवकी समाधि (निसिधि ) | ( उक्त वर्षमें ) उन्हें छुटकारा मिला, अर्थात् स्वर्गगत हुए । ] [EC, IX, Coorg tl., n° 56] १८१ बेळगामि- कन्नड़ [शक ९७० = १०४८ ई० ] [ सोमेश्वर मन्दिरके पास एक पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोधलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् ॥ स्वस्ति समस्त भुवनाश्रय श्री - पृथ्वी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक सत्याश्रय-कुळ-तिळकं चालुक्याभरण श्रीमत् त्रैलोक्यमल्लदेवर विजय राज्यं प्रवर्त्तिसे तत्पाद-पल्लवोपशोभितोत्तमाङ्ग स्वस्ति समधिगत- पञ्च महा-शब्द महामण्डलेश्वरं वनवासि - पुर-वरेश्वरं महालक्ष्मी-न्ध-वर प्रसादं त्याग- विनोदमायदाचार्य्यन सहाय शौर्य्यं गण्डर गण्ड गण्ड-भेरुण्ड मूरु-रायास्थान- कलि बिरुद - मण्डलिक-वृषभ-शकरं कलिगळ मोगद कयि बिरुदरादित्यम् प्रत्यक्ष - विक्रमादित्य जगदेक -दानि -
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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