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________________ जैन - शिलालेख संग्रह दूसरा पत्र, दूसरी बाजू ३० परमेश्वर-भक्ति-युक्तेन नमस्क्रियमाणमित्र विराजमान प्रहत - पुष्करमन्द्र-निनादा ३१ कर्णनोदितानुरागै प्रावृडारम्भ-काल-जनितोत्सवारम्भः मयूरैः १३४ प्रारब्ध-वृत्त-नृ ३२ तान्त धूम - वेला - लीला-गत विलासिनी-जनाना कर-तल-किसलयरस-भाव- सद्भाव-प्रक ३३ टन - कुशल- शशिवदनाङ्गना-नर्त्तनाहृत-पौर युवति-जन-चिन्तान्तर समस्त - सिद्धान्त-साग ३४ र पारग-मुनि-शत-सङ्कुल देवकुलमासीत् कृण्णेश्वरनाम स्वनामधेयाङ्कित असा ३५ कालवर्ष इति विख्यात [11] तस्य सूनुः आनत-नृप-मकुटमणि-गण-किरण - जाल-रञ्जित - ३६ पद - युगल-नख-मयूख-प्रभा भासित - सिंहासनोपान्त कान्ताजनकटक-खचि ३७ त-पद्मराग दीधिति- विसर - शुम्भत्- कुसुम्भ-रस-रञ्जित-निज-वबलवीज्यमान- चारु-चा ३८ मर-निचय-विख्यात-प्राज्य-राज्याभिषेकान्तैरैकैश्वर्य्य-सुख-समनुभवस्थि ३९ तिः निज-तुरङ्गमैक-विजयानीत-राजलक्ष्मी-सनाथो महीनाथो यः कल्पाङ्घ्रिपः ससेव १ ‘सत्यमेव' ऐसा शुद्ध पाठ मालूम पडता है ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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