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________________ कडवका लेख ४० चिन्तामणिरिति ध्रुव य वदन्त्यर्थिनः । नित्य प्रीत्या प्राप्तार्थ सम्पदसौ प्रभूतवर्ष इति वि४१ ख्यातो भूपचक्रचूडामणिः [1] तस्यानुजः धारावर्ष-श्री-पृथ्वी वल्लभ-महाराजाधि४२ राजपरमेश्वरः खण्डितारि-मण्डलासि-भासित-दोईण्ड' पुण्डरीक' ___इब बलिरिपु-मर्दना४३ क्रान्त-सकल-भुवनतल सुकृतानेक-राज्य-भार-भारोहहन-समर्थः हिमशैल-नि४४ शालोर स्थलेन राजलक्ष्मी-विहरण-मणि-कुट्टिमेन चतुराङ्गनालिंगन-तुङ्ग-कुच तीसरा पत्र, पहली बाजू ४५ सग-सुखोद्रेकोदित-रोमाञ्च-योजितेन स्व-भुजासि-धारा-दलित___ समस्त- गलित-मुक्ताफल-वि४६ सर-विराजितारि-बल-हस्ति-हस्तास्फालन-दन्त-कोटि-घट्टित-घनी कृतेन विराजमान त्रिपुर-- ४७ हर-वृषभ-ककुदाकारोन्नत-विकटास-तट-निकट-दोधूयमान-चारु चामर-चयः फेन-पिण्ड४८ पाण्डुर-प्रभावोदितच्छविना वृत्तेनापि चतुराकारेण सितातपत्रे___णाच्छादित-समस्त-दिग्-विव४९ रो रिपुजनहृदयविदारणदारुणेन सकलभूतलाधिपत्यलक्ष्मीली १ 'पुण्डरीकाक्ष' पढो। २ 'दलितमस्त' पढो। ३ आगे ४९ वीं पक्तिसे प्राचीन लेखमाला, प्रथम भाग, लेख ११ परसे लिया है।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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