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________________ जैनमेघदूतनी चक्रे काव्यं वरमिह मया स्तम्भनेशप्रसादात् सद्भिः शोध्यं परहितपरैरस्तदोषैरसादात् ॥ १४१ ॥ ॥ शीलदूताभिधानं समस्यामयं काव्यं समाप्तम् ॥ आ सिवाय इंदुदत, चेतोदूत अने मेघदूतसमस्यालेख आदि संदेश काव्योनो परिचयना जिज्ञासुओए विज्ञप्तित्रिवेणी जोवी जोइए. (प्रस्तावना पृ० ६ थी २७) नाहक अहीं आपी पिष्टपेषण करवू उचित समजतो नथी. आ प्रमाणे जैनेतरोए पण विविध दृष्टिए कालिदासना मेघदूतनुं अनुकरण कयु छ. तेओमां पण एके एq संदेश मेघतदूनां जैनेतर अनुकरणो । काव्य अद्यापि मळ्यु नथी जे कालिदासना काम मेघदतनी स्पर्धा मां टकी शके. अत्यार सूधीमां जे मळी आव्यां छे तेमनो मात्र नामनिर्देश ज करवो बस समजु छु.-(१) पवनदूत-धोइककृत (२) हंससंदेश-वेदांतदेशीकविकृत (३) कोकिलसंदेश-उदंडशास्त्रीकृत (४) शुकसंदेश -लक्ष्मीदासकृत (५) उद्धवदूत-माधवकवींद्र भट्टाचार्यकृत (६) मनोदूत-तैलंगवजनाथकृत (७) रथांगदूत-नाम नथी (८) पदांकदूत-कृष्णसार्वभौमकृत (९) हंसत-रूपगोखामिकृत (१०) उद्धवसंदेश-नाम नथी. आ बधांना संबंधमां ख. किलाभाइ जणावे छे के, वेदान्तदेशीकविकृत हंससंदेश घणुं उत्तम प्रकारनुं दूतकाव्य छे. अने अत्यंत रमणीय होवाथी कालिदासना मेघदूतकरतां पण चढे ते, छे, एम अभिनवभट्ट बाण कृष्णमाचार्य मेघसंदेशनी प्रस्तावनामां लखे छे. आ काव्य शोध करतां पण मने मळी आव्यु नथी. एटले ते उपर कीधुं तेमां केटलु सत्य छ, ने कही शकातुं नथी. परंतु मेघदूतना करतां ए काव्य जो चढे ए, होय, तो एनी आजसूचीमा घणी सारी प्रसिद्धि थवी जोइए. भा सिवाय वीजा जे अनुकरणो मळे छे तेमांना केटलां एक सामान्य काव्य तरीके सारां छे भने केटलांक माल वगरनां पण छ.
SR No.010002
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorShilratnasuri, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages205
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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