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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 78 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 'कल्याण हेतु क्रमिक देशना' बहुशः समस्तविरतिं प्रदर्शितां यो न जातु गृह्णातिं तस्यैकदेशविरतिः कथनीयानेन बीजेनं17 अन्वयार्थ : यः बहुशः प्रदर्शिताम् = जो जीव बारम्बार बताने पर भी समस्त विरतिं = सकल पाप रहित (मुनिवृत्ति को) जातु न गृह्णाति तस्य= कदाचित् ग्रहण न करे तो उसकों एकदेशविरतिः =एकदेश पापक्रियारहित (गृहस्थाचार को ) अनेन बीजेन = इस हेतु से कथनीया = समझायें (अर्थात् कथन करें) यो यतिधर्ममकथयन्नुपदिशति गृहस्थधर्ममल्पमतिः तस्य भगवत्प्रवचने प्रदर्शितं निग्रहस्थानम् 18 अन्वयार्थ : यः अल्पमतिः= जो तुच्छ-बुद्धि (उपदेशक) यतिधर्मम् अकथयन् = मुनिधर्म को नहीं कहकरके गृहस्थधर्मम् = श्रावकधर्म कां उपदिशति तस्य = उपदेश देता है, उस उपदेशक को भगवत्प्रवचने = भगवंत के सिद्धांत में निग्रहस्थानम् =दण्ड देने का स्थानं प्रदर्शितं = दिखलाया हैं अक्रमकथनेन यतः प्रोत्साहमानोऽतिदूरमपि शिष्यः अपदेऽपि सम्प्रतृप्तः प्रतारितो भवति तेन दुर्मतिना 19 अन्वयार्थ : यतः तेन = जिस कारण से उसं दुर्मतिना = दुर्बुद्धि के अक्रमकथनेन =क्रमभंग कथनरूप उपदेश करने से अतिदूरम् = अत्यंत दूर तकं प्रोत्साहमानोऽपि = उत्साहवान होने पर भी शिष्यः अपदे अपि = शिष्य तुच्छ-स्थान में ही संप्रतृप्तः = संतुष्ट होकरं प्रतारितः भवति =ठगाया जाता हैं मनीषियो! धरती के देवता निग्रंथ-योगी की दशा अनुपम हैं जहाँ सारा विश्व सोता है, वहाँ योगी जागते हैं और जहाँ सारा विश्व जागता है, वहाँ निग्रंथ-योगी सोता हैं यह परम वीतरागी संत की दशा हैं अहो! जिनकी दृष्टि में प्रत्येक जीव के प्रति निर्मल परिणाम हैं तो उनके भाव में भी पदार्थ वैसा ही झलकता Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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