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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 77 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 जिनवाणी सुनने को तैयार रहनां भो ज्ञानी! उद्देश्य, आदेश, निर्णय, परीक्षा, इन चार बातों पर पहले ध्यान देना चाहिए, फिर उपदेश सुनना चाहिएं जो कहा जा रहा है, वह पूर्व आचार्यों के वचनों से मिलाप खा रहा कि नहीं? इसका नाम 'तत्त्व की परीक्षा' हैं मनीषियो! निर्ग्रथ योगी विषय-कषाय, आरंभ - परिग्रह से रहित होता हैं विद्वानों ने पं. टोडरमल जी को आचार्यकल्प लिख दिया है, पर वास्तव में जो पंच परमेष्ठी आचार्यभूत हैं वैसे आचार्य मत मान लेनां वह विद्वान इतना प्रकाण्ड ज्ञानी था, यदि वे आज तुम्हारे सामने होते तो वह स्वयं कहते कि मेरे साथ मिथ्यात्व को मत जोड़ों पं. टोडरमलजी जैसा करणानुयोग का प्रकाण्ड विद्वान, जिसने अल्पकाल में जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड की टीका लिखी, त्रिलोकसार ग्रंथ की टीका लिखीं 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में मिथ्यात्व का खण्डन किया हैं 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' पर भी उन्होंने टीका की है, परंतु अधूरी कर पाए थे, उसकी पूर्ति दौलतरामजी ने की हैं अभी तक तो यह व्यवस्था थी कि गुरुओं की टीका को शिष्यों ने पूरा किया हैं आचार्य भगवन् वीरसेन स्वामी की धवला टीका पूरी नहीं हो पायी तो उनके शिष्य जिनसेन स्वामी ने पूर्ण की, वे महापुराण जैसे चौबीस पुराण लिख रहे थें यदि यमराज तनिक करुणा कर लेता, तो आज दिगम्बर जैन साहित्य में महापुराण जैसे चौबीस पुराण होते, जो आज विश्व में एक अनुपम कृति होती, लेकिन काल कहाँ दया करता है ? चौबीस पुराण लिखनेवाले थे तीर्थंकर के, लेकिन एक बहुकाय आदीनाथ स्वामी का कथन ही कर पाएं बाद में उनके शिष्य गुणभद्र स्वामी ने 'उत्तर - पुराण' में तेईस तीर्थंकरों का वर्णन किया हैं अतः, आचार्यो के अधूरे ग्रंथों को शिष्यों ने पूरा कियां यद्यपि पुरुषार्थसिद्धयूपाय ग्रंथ की टीका पंडित टोडरमल जी ने लिखी, पर उनकी मृत्यु के बाद पं. दौलतराम जी ने उसे पूरा किया, यह उनका बड़प्पन थां आप ध्यान रखना, कभी किसी की कृति को चुरा मत लेनां जहाँ से ली, उसका नाम जरूर लिख देनां मुनियों की वृत्ति रत्नत्रय से मण्डित व पापाचार से रहित होती हैं पर से परान्मुख होते हैं और निज से अभिमुख होते हैं, एकान्त वृत्ति से लिप्त होते हैं भो ज्ञानी ! ध्यान रखना, भीड़ से संतों के चारित्र का मापदंड मत करना, भीड़ तो जादूगर भी बुला लेता हैं भीड़ संत ह्रदय की पहचान नहीं है, साधना संत - ह्रदय की पहचान है-ऐसे ऋषियों को नमस्कार कर लेना पंच परमेष्ठी को नमस्कार Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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