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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 66 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 (2) जो विखण्डित करने पर पुनः मिल जाता है, वह पुद्गल का 'स्थूल'भेद हैं जैसे घृत, तेल, पानी आदि (3) जो चक्षु -इन्द्रिय से दिख तो रहा है, लेकिन जिनका छेदन,भेदन अथवा हस्तादिक से ग्रहण नहीं किया जा सकता है,जैसे छाया, धूप आदि, वह 'स्थूल-सूक्ष्म' पुद्गल हैं (4) जिसे आप ग्रहण तो कर रहे हो, अनुभव भी कर रहे हो, पर दिख नहीं रहा है, जैसे कि आपके कानों में शब्द जा रहे हैं, आप शीत या उष्णता का वेदन कर रहे हो, चार-इन्द्रिय के जो विषय हैं,यह 'सूक्ष्म-स्थूल' है,जैसे स्पर्श, रस, गंध, शब्द आदि (5) कार्माण-वर्गणादि 'सूक्ष्म' भेद हैं (6) कर्म-वर्गणा से नीचे के द्विअणुक स्कंध 'सूक्ष्म-सूक्ष्म' भेद हैं, जो अवधिज्ञानी और केवलज्ञानी का विषय बनता है; श्रुत- ज्ञान से 'परोक्ष' विषय बनता है, परन्तु आपके ज्ञान का विषय नहीं हैं यह कार्माण-वर्गणाएँ भी प्रत्यक्ष विषय नही हैंज्ञान का स्कंध-परमाणु जो सूक्ष्म-सूक्ष्म है, के बारे में हमारे आगम में दो आचार्यों के दो अभिमत हैं यदि हम इनके भेद करेंगे तो परमाणु यहाँ नहीं आ पायेगा और पुद्गल के भेद करोगे तो परमाणु को ग्रहण करेंगें भो ज्ञानी! लोगों ने आत्मा और पुद्गल शब्द को मात्र द्रव्यानुयोग की भाषा मात्र समझ लिया हैं, पर द्रव्यानुयोग इतना ही नहीं हैं द्रव्यानुयोग को समझना है तो ग्रंथराज पंचास्तिकाय का अध्ययन करों जितना न्यायशास्त्र है, दर्शन-शास्त्र है, वह सब द्रव्यानुयोग हैं आगम में जितना दर्शनपक्ष है, वह सब द्रव्यानुयोग हैं आत्मा और पुद्गल के अंदर क्या-क्या परिणमन चल रहा है, यह सब द्रव्यानुयोग का विषय हैं सूक्ष्म की चर्चा के पहले आचार्यों ने पुदगल के चार भेद और कर दिये-स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु अहो! अणु/परमाणु की चर्चा करने वाला और शून्य का आविष्कार करने वाला कोई दर्शन है, तो जैनदर्शन हैं भौतिक-विज्ञान आज भले ही न्यूट्रान,प्रोट्रान की बातें कर रहा है, लेकिन माँ जिनवाणी से पूछोगे तो यह कहेगी कि अभी तुमने स्कन्ध को ही जाना है, परमाणु को तो जाना ही नहीं हैं यह पूरा विषय मात्र आपके मस्तिष्क का चल रहा हैं अरे! अनन्तानन्त परमाणुओं का समूह 'स्कन्ध' है, उसका आधा कर दो वह 'देश' संज्ञा को प्राप्त होता हैं उस देश का आधा 'प्रदेश' है तथा जिसका विभाग होना बंद हो जाये उसका नाम 'परमाणु' हैं जब तक विभाग चल रहे हैं तब तक ‘परमाणु' संज्ञा नहीं है, स्कन्ध हैं जब आपके पास अविभाज्य बचे-उसका नाम परमाणु हैं परमाणु देशावधि ज्ञान का भी विषय नहीं है; वह तो सर्वावधि/परमावधि ज्ञानी मुनिराज के ज्ञान का विषय हैं देशावधि -ज्ञान तो देव, नरक, तियंच, मनुष्य आदि चारों गतियों में हो जाता है, पर सर्वावधि/परमावधि ज्ञान नियम से एक-भवावतारी, चरमशरीरी मुनिराज के ही होता हैं वह व्यतिपाती (छूट जाने वाला) नहीं होता अर्थात् उनका अवधिज्ञान छूटता नहीं हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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