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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 65 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 ISBN # 81-7628-1313 v-2010:002 "बंध-व्यवस्था" परिणममानस्य चितश्चिदात्मकैः स्वयमपि स्वकैर्भावै भवति हि निमित्त मात्रं पौद्गलिकं कर्म तस्यापिं13 अन्यवार्थ: हि = निश्चय से स्वकैः = अपने चिदात्मकैः =चेतनास्वरूपं भावैः = रागादि परिणामों से स्वयमपि = स्वयं ही परिणममानस्य = परिणमन करते हुएं तस्य चित अपि = पूर्वोक्त आत्मा के भी पौद्गलिक = पुद्गलं कर्म = ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्म निमित्तमात्रं भवति = निमित्त मात्र होते हैं भो मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी की दिव्यदेशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य अमृतचन्द स्वामी ने सिद्धान्त का बहुत ही सहज प्रतिपादन किया हैं पुद्गल का स्वतंत्र परिणमन चल रहा है और जीव का स्वतंत्र परिणमन चल रहा है परंतु एक-दूसरे के निमित्त को प्राप्त करके राग-भाव और बंध-भाव को प्राप्त हो रहे हैं भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचंद स्वामी ने समयसार आत्मख्याती टीका की अस्सी वी गाथा में दोनों बातें कह दी हैं कि जीव के रागादिक भावों के निमित्त को पाकर यह कार्माण –वर्गणाएँ कर्म -रूप को प्राप्त हो रही हैं और कर्म के निमित्त को पाकर, जीव रागादि-भावों को प्राप्त हो रहा हैं दृष्टि को निहारना कि जीव चेतन है और कर्म जड़ है, फिर भी जड़ का चेतन पर प्रभाव पड़ रहा हैं छह द्रव्यों के अन्तर्गत मात्र जीव और पुद्गल दो ही ऐसे द्रव्य हैं, जिनमें क्रियावती शक्ति हैं क्षेत्र से क्षेत्रान्तरित होना-इसे ही क्रियावती शक्ति कहते हैं जिस प्रकार धर्मद्रव्य, अधर्म द्रव्य तथा कालाणु स्थाई हैं, उसी प्रकार आकाश भी अपने आपमें स्थिर हैं 'लोक' संज्ञा को प्रदान कराने वाले छह द्रव्य जिस प्रदेश में देखे जाते हैं उसका नाम है आकाश और निश्चयदृष्टि से तो मेरी आत्मा ही लोक हैं इस प्रकार पर में पर को देखना बाह्यलोक है, निज में निज को निहारना अन्दर का (निज का) लोक हैं भो ज्ञानी! लोक में छह द्रव्य हैं छह द्रव्यों में एक पुदगल द्रव्य है और उसके भी छह भेद हैं: (1) जिसका विखण्डन किया जा सकता है, जिसको पृथक्-पृथक् किया जा सकता है, वह स्थूल-स्थूल पुद्गल है, जैसे कि पाषाणखंड को तोड़ दिया, उसके दो टुकड़े आपको आँखों से दिख रहे हैं और हाथों से उठा रहे हो,स्पर्शित भी कर रहे हो,यह स्थूल-स्थूल स्कन्ध हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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