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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 67 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! आज के युग में कर्म-सिद्धांत समझना बहुत सरल हो गया हैं कर्म एक वस्तु है, आत्मा भी एक वस्तु हैं इसे आप रहस्य का विषय मत बनाओं आत्मा एक द्रव्य है, कर्म एक द्रव्य हैं प्रत्येक द्रव्य परस्पर में निमित्त-नैमित्तिक सम्बंध रखते हैं जैसे कि आज आपके हाथ में मोबाइल है, बिना तार के आप शब्द सुन रहे हैं यह शब्द पुद्गल के छह भेदों में 'सूक्ष्म-स्थूल' भेद है, जो चार इन्द्रियों का विषय हैं दिखता नहीं, पर अनुभव में आता हैं यह पुद्गल-वर्गणाये/ भाषा-वर्गणायें इतनी गतिशील हैं कि एक सैकंड में आप यहाँ बैठे-बैठे हजारों किलोमीटर दूर की बातें कर रहे हों एक स्थूल पौद्गलिक-शक्ति को वर्तमान के विज्ञान ने इतना विकसित किया हैं ऐसे ही शब्दों को संस्कारित करके बोलना अर्थात् शब्दों को व्याकरण द्वारा संस्कारित किया जाना,उसका नाम ही संस्कृत हैं यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि पहले भावों का जन्म होता है, फिर बोली का जन्म होता हैं बोली जो खंड-खंड होती है तो व्याकरण से इसमें सुधार किया जाता है,उसका नाम हो गया 'भाषा' शब्द को लोगों ने आकाश का धर्म कह दिया, किन्तु आकाश अमूर्तिक हैंजबकि शब्द मूर्तिक हैं शब्द आकाश का धर्म नहीं, शब्द पुद्गल का धर्म हैं यह पुद्गलद्रव्य की पर्याय है और उसे जिनवाणी शब्द वर्गणा कहती हैं यह आत्मा पुद्गल के आलम्बन से इतने सब काम कर रही हैं यह चैतन्य–विद्युत की तरंगें इस शरीर रूपी मशीन से अपना सब काम करा रही हैं बटन चटकाया, काम प्रारम्भ हुआं चैतन्य बिजली चली गई तो मशीन रह गईं भो ज्ञानी! विद्युत चली जाती है, वह आत्मा हैं आचार्य कुंदकुंद स्वामी कह रहे हैं कि बिना व्यवहार के हम परमात्मा को नहीं समझ सकतें इसी प्रकार बिना पुद्गल के संयोग के हम आत्म -द्रव्य को नहीं समझ सकतें पर आत्मा ही उपादेय है, पुद्गल उपादेय नहीं, ये ध्यान रखना आत्मा के ज्ञान-दर्शन की तरंगों को अर्थात् आत्मा की उपयोग-दशा को यदि तुम भोग में लगाओगे तो जला देगी और यदि योग में लगा दोगे तो जिला देगी, अमर कर देगीं अब चाहे तुम अशुभ में जाओ, चाहे शुभ में, उपादान-शक्ति तो आत्मा की हैं अज्ञानी ने विभाव को पुदगल में जड़ दिया और स्वभाव को आत्मा में जड़ दिया है, जबकि विभाव व स्वभाव दोनों धर्म आत्मा के हैं मोबाइल की सिद्धि हेत जैन-आगम कह रहा है कि जब उस तीर्थकर -आत्मा ने जन्म लिया तब स्वर्ग और नरक में कोई मोबाइल नहीं रखा थां परन्तु बिना तार के, बिना लाइन के उस पुण्य -वर्गणा ने प्रभाव दिखायां सौधर्म इन्द्र का मुकुट हिलने लगा और नरक के नारकी को एक क्षण के लिये शांति मिलने लगीं ये क्या था? मोबाइल की तरह पुद्गल-वर्गणाएँ अपना काम कर रही हैं विज्ञान ने कुछ नया नहीं खोजा,सब खोजा हुआ दिखाया हैं खोजा हुआ रखा है आगम में अन्तर इतना है कि आज हम अपनी समाज को जैन साहित्य पर आकर्षित नहीं करवा पा रहे हैं, जिनवाणी के सूत्रों के रहस्यों को खोल नहीं पा रहें आज तो दीवारों पर सूत्र लिखे हैं, लेकिन उन सूत्रों में क्या-क्या है, मालूम नहीं जब कोई पुण्यात्मा जीव Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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