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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम पुरणमल बेगवानी व माता वन्नों देवी थी। छोटी बहन गुलाब कंवर थी। जो वाद में साध्वी बनी। ___ संवत १६०८ में आप वीदासर में जयाचार्य के चरणों में आए। आप के दीक्षा के भावों को देख कर माता व वहन भी तैयार हो गए। ___ संवत् १६०८ को लाढ़ने में आप की दीक्षा सम्पन्न हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष को माता व वहिन की दीक्षाएं हुई। आप को दो बार चेचक का रोग हुआ। आप सुख दुख .. में सम रहने वाले वीतराग संत थे। आप ने तेरापंथ में संस्कृत की पढाई प्रारम्भी की। इस के लिए आप को भागीरथ प्रयत्न करने पड़े। आप को अनेकों संस्कृत ग्रंथ कण्ठास्थ थे। आगम, चूर्णि, नियुक्ति ग्रंथ याद थे। आप एक वार जो पढ़ लेते, वह भूलते नहीं थे। २४ वर्ष की अवस्था में आप युवाचार्य बने। वह १८ वर्ष इस पद पर रहे। संवत १६३८ भाद्र शुक्ला १२ से जयपूर में आप आचार्य पद पर विभूषित हुए। समस्त श्री संघ का विश्वास उन्हें प्राप्त था। सभी संघ उनकी आज्ञा मान कर स्वयं को अहोभागी समझता था। ___ संवत् १६४६ में रत्नगढ़ पधारे। वहीं वर्षावास अस्वस्थ अवस्था में वीता। चर्तुमास समाप्त कर आप सरदार शहर पधारे। महापर्व महोत्सव आनंद से बीता। संवत १९४६ की चैत्र कृष्णा को समाधि मरण से आप देवलोक पधारे। षष्ठ आचार्य श्री माणकगणि जी : आप का जन्म संवत १६१२ की भाद्र कृष्णा को जयपुर के जोहरी परिवार में श्री हुक्मचंद जी खारड व माता छोटा जी के यहां हुआ। वचपन में माता-पिता का स्वर्गवास होने के कारण इनका पालन पोषण लाला लक्षमण दास ने किया। लाला जी स्नेही धर्म निष्ट और विशाल हृदय के 33
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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