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________________ - -आस्था की ओर बढ़ते कदम ततीया आचार्य श्री रायचंद जी : __आप का जन्म संवत १८४७ में शवलीया गांव में श्रावण चतुरोजी व नाता कुशली जी के यहां हुआ। आप का धर्म से ओत प्रोत परिवार में थे। ११ वर्ष की आयु में आप साधू बने । आप के साथ आप के पिता भी साधू बने। ३ वर्ष आचार्य भिक्षु के सानिध्य में रहकर आगमों का अध्ययन किया। संवत् १८५७ में आप साधु वने। संवत १८७७ में युवाचार्य पद पर आरूढ़ हुए। आचार्य श्री भारमल जी के पश्चात् आप आचार्य के पद पर सुशोभित हुए। संवत १८०८ की माघ कृष्णा को आप स्वर्ग सिधारे। आप सरलात्मा तपस्वी व आगम मर्मज्ञ थे। अनेकों प्राणीयों का आप ने कल्याण किया। चतुर्थ आचार्य महान साहित्यकार श्री जीतमल जी : महान विद्वान, उच्च कोटि के साहित्यकार, प्रथम राजस्थानी जैन आगम टीकाकार आचार्य श्री जैतमल ने अल्पायु में संयम ग्रहण किया। वुद्धि इतनी तेज थी कि मात्र १४ वर्ष की आयु में संत गुणमाला ग्रंथ लिख डाला। आप ने साढ़े तीन लाख पद परिणाम राजस्थानी साहित्य रचा। इन का दूसरा नाम जय आचार्य था। इन्होंने संघ में अनुशासन लाने में जी जान एक कर दिया। इन्हें भी काफी विरोधों का सामना करना पड़ा। पर तेरापंथ सम्प्रदाय में आगमों को सरल भाषा में प्रस्तुत कराने का श्रेय आप श्री को जाता है। आप राजस्थानी भाषा के महान विद्वान थे। . पंचमाचार्य श्री मधवागणि जी : आप का जन्म १८१७ में चेत्र शुक्ल ११ को वीदांसर में हुआ। वचपन का नाम मेघराज था। पिता श्री 32
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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