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________________ = =સ્થા છ વોર વઢતે ટમાં स्वामी थे। आप श्री वचपन से ही विनित व सरल स्वभाव के थे। संवत् १६२५ में आप ने १६ वर्ष की आयु में श्री जयाचार्य की शरण जयपुर में ग्रहण की धी। वैराग्य के वीज अंकुरित होने लगे। गुरू ने शिष्य को हर दृष्टि से परखा। संवत् १६२८ फाल्गुण शुक्ल ११ को लाडनु में आचार्य श्री से साधू जीवन ग्रहण किया। फिर सेवा, स्वाध्याय व तप में लग गए। संस्कृत, ग्रंथ का विधिवत् अध्ययन यिका। आप महान आत्मा थे। आप ने जन सामान्य से १६३८ को तेरापंथ शाषण के. डोर संभाली। आप ने आम आदमी से लेकर राजा तक के लोगों को अपने उपदेशों से प्रभावित किया। विधिवत् रूप से संवत् १६४६ को चेत्र कृष्णा ८ को आप का आचार्य पद महोत्सव मनाया गया। इनका आचार्य काल मात्र ५ वर्ष का ही रहा। संवत् १९५४ में उनका अंतिम चर्तुमास सुजानगढ़ में हुआ। मात्र ४२ वर्ष की अवस्था में आप अपनी साधना पूर्ण कर देवलोक पधारे। सप्तम आचार्य श्री डालगणि जी म० : तेरापंथ संम्प्रदाय के अष्टम आचार्य श्री डालगणि का जन्म संवत् १९०६ को आषाढ़ शुक्ला ४ को उज्जैनी नगर्न में सेट कनीराम जी व माता जडावा जी के यहां हुआ। बचपन में पिता का साया सिर से उठ गया। यह घटना उनके वैराग्य का कारण वनी। मां ने अपने वेटे का पालन शान शौकत व धर्मिक संस्कारों से किया। ' मात्र ११ वर्ष की अवस्था में उनके मन में वैराग्य उमड़ पड़ा। संसार असार दिखाई देने लगा। पर माता का वैराग्य इन से कम नं था। इसी कारण ३ वर्ष पहले माता जी ने साधी भोमा जी से दीक्षा अंगीकार की। यह. वात संवत् 34
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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