SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम इस महान दार्शनिक संत का देवलोक संवत १८६० भाद्र शुक्ल त्रयोदशी को सिरियारी में ७७ वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने ५५ से अधिक ग्रंथों की रचना राजस्थानी भाषा में की । यह ग्रंथ आपके सूक्ष्म ज्ञान का प्रतीक हैं। उन्होंने संसार को अनुशासन का पाठ पढ़ाया। सभी साधु साध्वीयों को एक आचार्य को ही गुरू मानने की आज्ञा दी। किसी को अलग गुरू कहलवाने से रोका। हर क्रांतिकारी की तरह आचार्य भिक्षु के कुछ विचारों का व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। इन विचारों के आचार्य भिक्षु व उनके सम्प्रदाय को जैन धर्म में अलग पहचान मिली। आर्चाय भिक्षु का सारा जीवन ही संघर्षमय था। पर उन्हें अपने सम्प्रदाय के लोगों के माध्यम से लोगों में काफी सन्मान भी मिला है। द्वितीयाचार्य श्री भारमल जी : दूसरे आचार्य श्री भारमल का जन्म मेवाड़ के मुवो गांव में लोढ़ा परिवार में संवत १८०३ में हुआ। आपके पिता किसनों जी व माता धारणी श्रमण संघ के प्रति समर्पित थे। आप ने अपने पिता के साथ संयम अंगीकार किया। यह घटना नागोर में घटी। फिर आप ४ वर्ष बाद आचार्य श्री भिक्षु के परिवार के सदस्य बन गए। उनके समय १३ की संख्या घट कर मात्र ६ रह गई थी। आचार्य श्री भारमल जी को भी आचार्य भीखन की तरह कष्टों का सामना करना पड़ा। आप का जीवन चमत्कारों का खजाना है। संवत् १८३२ में मृगशिरा को आप आचार्य पद सुशोभित हुए। जीवन में ४४ व्यक्तियों को संयन पंथ पर लगाया। आपका जीवन उतार चढाव से भरा पड़ा है। राजनगर में आपका देवलोक हुआ। 31
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy