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________________ सत्कार किया, पर अपने घर हाथी को कोई भी बिठा नहीं पाया। वृक्ष पर बैठा तोता सारा दृश्य देख रहा था। उसने बड़ी अच्छी बात कही कि अपने-अपने घर से बैठने की आसन लाकर बिछा दें तो हाथी थोड़ी देर आराम से बैठ सकता है। अपना-अपना अलग-अलग अहंकार पुष्ट करने का भाव छोड़कर यदि सभी लोग परस्पर मिल-जुल कर अच्छा कार्य करें, तो सफलता आसानी से मिलती है। साधर्मी के प्रति वात्सल्य और उसके सम्मान की रक्षा का भाव मन को कैसा आनन्द देता है। राजा हरजसराय के पुत्र थे सेठ सुगनचन्दजी। अपार सम्पदा थी उनके पास। उनके यहाँ जब पुत्र का जन्म हुआ तो खुशियाँ मनाई गईं। सारा नगर सजाया गया। घर-घर में मिठाई बाँटी गई। एक गरीब के घर जब सेठ का नौकर पहुँचा मिठाई देने, तो उस गरीब को बड़ा संकोच हुआ। उसने मिठाई नहीं ली और कहा कि भाई! मैंने कभी सेठजी का कोई उपकार नहीं किया, उन्हें कुछ दिया नहीं तो उनसे कैसे मिठाई ले लूँ ? क्षमा करना। मेरी ओर से सेठजी से क्षमा माँग लेना। ऐसी बात सेठजी को मालूम पड़ी तो विचार में पड़ गए। बात तो ठीक है। व्यवहार तो देने-लेने से ही चलता है। अकेले देने से व्यवहार नहीं चलता। लेना भी चाहिए । भले ही कोई गरीब हो, पर सम्मान उसका भी रखना चाहिए। साधर्मी के प्रति वात्सल्य तो यही है। सेठ जी उसकी दकान पर गये, टोकरी में से एक मठठी चने उठाकर खा लिये और बोले-लाओ, पानी भी पिला। उस दुकानदार को शर्म आई क्योंकि उसके पास पानी पिलाने को कोई बरतन नहीं था। यह देख सेठ जी ने चुल्लू बनाई और कहा कि पानी पिलाओ। तब दुकानदार ने सकुचाते हुए सेठ जी को पानी पिलाया। तब सेठ जी ने नौकरों को इशारा किया, नौकर मिठाई लेकर आये और उसकी दुकान पर रख दी। वह गरीब आदमी कुछ कहे इससे पहले ही सेठजी ने हँसकर कहा कि 10_7970
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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