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________________ मैंने आपका दाना भी खाना लिया और पानी भी पी लिया, अट अब मिठाई लेने से इंकार मत करना । गरीब आदमी की आँखों से आँसू बहने लगे । वह सेठजी के चरणों में गिर पड़ा। मन गद्गद हो गया । साधर्मी के प्रति वात्सल्य भाव ऐसा ही निर्मल हो तो कल्याण होने में देर नहीं लगेगी। "वात्सल्य अंग सदा जो ध्यावे, सो तीर्थंकर पदवी पावे ।" जो वात्सल्य अंग को धारण करता है, वह तीर्थंकर पद को प्राप्त करता है। प्रवचनवात्सल्य का भी उतना ही महत्व है, जितना दर्शन विशुद्धि भावना का । आचार्य कहते हैं- कि जिसके अन्दर प्राणीमात्र के प्रति वात्सल्यभाव अर्थात् प्रेमभाव, करुणाभाव होता है, वही भावों की वृद्धि करके तीर्थंकरप्रकृति का बन्ध करता I भगवान् महावीर स्वामी को सर्प ने डसा तो दूध निकला, क्योंकि उनके अन्दर प्राणीमात्र के लिए वात्सल्य था । एक नारी जब तक बच्चे को जन्म नहीं देती, तब तक उसकी छाती से दूध नहीं निकलता और बच्चे को जन्म देते ही उस बच्चे के प्रति इतना वात्सल्य भाव उसके अंदर आता है कि उस वात्सल्य भाव के कारण उसकी छाती दूध से भर जाती है। यह उसके वात्सल्य भाव की पराकाष्ठा है । जब एक नारी में एक बच्चे के प्रति वात्सल्य भाव से दूध की उत्पत्ति हो सकती है तो भगवान् महावीर के अन्दर तो तीनलोक में जितने भी जीव हैं सबके प्रति वात्सल्य भाव था तो उनका रक्त ही दूध बन गया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह जिनेन्द्र भगवान् का मार्ग वात्सल्य द्वारा ही शोभा पाता है। इस मनुष्यजन्म का मंडन वात्सल्य ही है। परलोक-स्वर्गलोक में महर्षि देवपना भी वात्सल्य से ही होता है । वात्सल्य बिना इस लोक का समस्त कार्य नष्ट हो जाता है तथा परलोक में भी देवादि गति प्राप्त नहीं होती है। जिसे अर्हन्तदेव, निर्ग्रन्थगुरु, स्याद्वादरूप परमागम, दयारूप धर्म में वात्सल्य है, वही संसार के परिभ्रमण का नाश करके निर्वाण को प्राप्त 7982
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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