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________________ घुन लगी लकड़ी के समान नीरस और व्यर्थ है। उससे अपना और दूसरे का किसी का भी भला नहीं हो सकता। आचार्य महाराज वात्सल्य की महिमा बताते हुए कहते हैं कि देखो, दूध पानी को अपने में मिलाता है विजातीय होने पर भी और अपन लोग साधर्मी या सजातीय को भी मिला नहीं पाते। आचार्य विद्यासागर महाराज एक दृष्टान्त सुनाते हैं कि दूध गरम करने अग्नि पर किसी बर्तन में रख दिया जाता है तो धीरे-धीरे दूध में मिला पानी अपने मित्र की सुरक्षा के लिए स्वयं अग्नि में जलता जाता है। जब दूध तेज गरम हो जाता है और पानी ज्यादा जलने लगता है तो दूध अपने मित्र की रक्षा के लिए अग्नि को बुझाने के लिए ऊपर की ओर आने लगता है यानी उफनने लगता है। जैसे ही बर्तन से बाहर आने को होता है, उसमें जल के छींटे डालते ही शान्त हो जाता है। मित्र से मिलते ही मन शान्त हो जाता है। पानी और दूध एक मित्र की तरह मानों एक दूसरे की सुरक्षा करते हैं। ऐसा ही व्यवहार हमारा भी परस्पर साधर्मीजनों के बीच में होना चाहिए। बच्चों की एक कहानी है। एक जंगल था। उसमें खूब सारे जानवर रहते थे। हाथी भी रहता था। सभी जानवर हाथी को बहुत चाहते थे। हाथी भी सभी से बहुत प्रेम रखता था। किसी अवसर पर सभी ने हाथी को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। हाथी ने भी सोचा कि चलो. सबसे मिल आते हैं। हाथी सबसे मिलने निकला । वह खरगोश के यहाँ पहुँचा तो खरगोश ने खूब आवभगत की। लेकिन एक समस्या आ गयी कि हाथी को बिठाएँ कहाँ? खरगोश के पास जगह भी कम थी और आसन भी छोटा-सा था। हाथी को अपने घर में बिठाने से वंचित रह गया खरगोश। उसे बड़ा दुःख हुआ। हाथी गिलहरी के घर पहुंचा। उसने खूब स्वागत किया, पर इतने बड़े हाथी को बिठाने की समस्या उसे भी आयी। वह भी बड़ी दुःखी हुई। एक-एक करके हाथी सभी के घर गया, सबने खूब 0_796_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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