SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 715
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिर पर विष्टा डाल दी, उसने तब भी समाधि नहीं छोड़ी। इसका नाम ही सच्ची समाधि है। जब इतनी समता आ जायेगी, तो हमारा मरण सच्चा मरण हो जायेगा । दूसरे रूप में साधुसमाधि से मतलब साधुओं के उपसर्ग को दूर करना अथवा धर्मात्मा को संबोधित करके समाधि नहीं बिगड़ने देना । जैसे भण्डार में लगी हुई अग्नि को बुझाते हैं, क्योंकि वस्तुओं की रक्षा करना उपकारक है। इसी प्रकार अनेक गुणों सहित व्रती / संयमी के किसी कारण से विघ्न आते हैं तो उनको दूर कर व्रत - शील की रक्षा करना, साधुसमाधि है। सम्यग्ज्ञानी ऐसा विचारता है कि हे आत्मन्! तुम्हारा अखण्ड अविनाशी ज्ञान - दर्शन स्वभाव है। तुम्हारा मरण नहीं है। जो जन्मा है, उसका विनाश भी होगा। सुकुमाल महामुनि को देखो, कैसे स्यालनी ने बच्चों सहित उनके शरीर को खाया, लेकिन उपसर्ग सहा और धीरज नहीं छोड़ा। सुकोशल मुनि को व्याघ्री ने खाया, गजकुमार के ऊपर विप्र ने अंगीठी रख दी, तो भी ध्यान नहीं छोड़ा। सनतकुमार मुनि के तन में कुष्ठ हो गया, वे विचारते रहे कि ये रोग पुद्गल में हैं, मेरे में नहीं । समन्तभद्र मुनि के तन में क्षुधावेदना हुई, लेकिन सम्यक्त्व को नहीं छोड़ा। दंडक राजा ने अभिनन्दन आदि पाँच सौ मुनियों को घानी में पिरवाया, लेकिन मुनियों ने समता नहीं छोड़ी। सात सौ मुनियों के ऊपर बलि राजा ने घोर उपसर्ग किया, लेकिन वे अपनी आत्मा में रहे । पाँचों पाण्डव मुनियों के तन में आभूषण तपा - तपा कर पहनाये, फिर भी वे ध्यान में ही खड़े रहे। जब ऐसे पुरुषों पर भी उपसर्ग आये और उन्होंने उपसर्ग को समता से जीत लिया, तब तुम्हारे ऊपर तो कोई उपसर्ग नहीं है। अब तो तुम सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्र एवं तप की आराधना करो। तुम्हें तप का फल मिलेगा। अगर समाधि के समय कुटुम्बी रोने लेगें तो अपशकुन होता है, इसलिए उस समय सब को समाधिमरण, वैराग्य भावना, बारह भावना 715 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy