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________________ ही सुनानी चाहिए और कहना चाहिए- मृत्यु तो मित्र उपकारी है, इसमें तुम घबराओ नहीं। शरीर मिट्टी है, पाषाण है। एक या दो मन पाषाण बांध करके जाओगे तो बेचने पर एक या दो पैसा मिलेगा, जिससे एक समय का भी पेट नहीं भरेगा और मणि को ले जाओगे तो बेचने पर काफी पैसा मिल जायेगा, जिससे समस्त जीवन की दरिद्रता नष्ट हो जायेगी। उसी प्रकार समता धारण कर शास्त्र का ज्ञान और चारित्र अथवा घोर तप करो। सम्यक्त्व सहित तप संसारपरिभ्रमण का नाश करके मोक्ष दिलाता है। जो प्राणी मुनियों के उपसर्ग दूर करता है, वह भी सातिशय पुण्य का उपार्जन करता है। जैसा सेठ सुदर्शन के जीव ने पूर्व भव में किया था। सेठ सुदर्शन का जीव पहले भव में एक ग्वाला था। जो जंगल में गाय चराया करता था। वहाँ पर एक मुनिराज ध्यान में बैठे थे। जाड़ा पड़ रहा था, ठण्डी-ठण्डी हवा शरीर को बाधा पहुँचा रही थी। ग्वाले को उन पर दया आती है और वह सोचता है- कि ये साधु जंगल में बैठे हैं, नग्न हैं, इनका कोई प्रबन्ध करना चाहिए, जिससे इन्हें ठंड न लगे। ग्वाले ने चारों ओर घास-फूस जला दिया। वैसे मुनिराज पर उपसर्ग था, लेकिन ग्वाले के भाव तो उनकी रक्षा करने के थे। उसी भाव के बल पर वह सेठ सुदर्शन बना जो तपस्या करके मोक्ष चले गये। इसलिए मुनिराज के उपसर्ग का निवारण करना साधुसमाधि है। एक गुफा में बैठे हुए आत्मलीन मुनिराज की गंध पाकर जब सिंह उनको भक्षण करने के लिए गुफा की ओर झपटा, तब वहीं पर बैठे हुए एक शूकर ने उस सिंह का अभिप्राय जानकर मुनिराज के प्राण बचाने के लिए सिंह को गुफा में जाने से रोका। सिंह अपने बल मद में चूर था, अतः शूकर के रोकने पर गुफा में घुसने लगा, तब मुनिराज को आँच न आने पावे इस विचार से शूकर सिंह से भिड़ने लगा। इस प्रकार शूकर और सिंह का युद्ध प्रारम्भ हो गया। सिंह ने अपने पंजे से शूकर को घायल कर 0 716 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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