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________________ आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में सल्लेखना के पाँच अतिचार बताये हैं। जीवितमरणाशंसे भयमित्रस्मृतिनिदाननामानः । सल्लेखनातिचार: पंच जिनेन्द्रैः समुदिष्टाः ।। जीने की इच्छा करना, मरने की इच्छा करना मरने से डरना, मित्रों की याद करना और आगामी भोगों की इच्छा करना- ये पांच जिनेन्द्र भगवान् ने सल्लेखना के अतिचार बताये हैं। यह जीव अज्ञानतावश मनुष्यशरीर के जन्म को जन्म तथा शरीर के मरण को अपना मरण मानता हुआ दुःखी होता है। तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आप को नाश मान। जिनकी पर्यायदृष्टि रहती है, उनकी सच्ची समाधि नहीं हो सकती। एक जगह गुरु और शिष्य रहते थे। उसमें से गुरु समाधि के स्वरूप को जानते थे। शिष्य पूछने लगा कि कैसी होती है समाधि? हमें सिखा दो। गुरु ने कहा- 'जाओ, सामने एक मकान खाली पड़ा है, उसमें बैठकर ध्यान लगाओ, समता रखना। अगर तुम्हारे अन्दर समाधि आ गई, तो उपसर्ग आने पर भी तुम ध्यान नहीं छोड़ोगे, तब समझ लेना तुम्हें समाधि की जानकारी हो गयी। गुरु ने परीक्षा लेने के लिए एक मेहतरानी को भेज दिया कि उसके पास खूब धूल उड़ा दे। मेहतरानी ने वैसा ही किया। उसे तुरन्त क्रोध आ गया और उठकर गुरु जी से आकर बोलागुरुजी! अभी तो समाधि का स्वरूप जाना ही नहीं। गुरु बोले कि फिर ६ यान लगाओ। वह जाकर ध्यान लगाने लगा। फिर परीक्षा के लिए किसी को भेज दिया। उसने उसके पास जाकर खूब गालियाँ दी। उसे कुछ कम क्रोध आया अब । वह सच्ची समाधि लगाकर आत्मा का चिन्तन करने लगा। गुरु ने उसके पास फिर मेहतरानी को भेजा। मेहतरानी ने उसके 10 7140
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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