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________________ दिखाता था। वह एक निशानेबाज था। वह अपनी पत्नी को एक बोर्ड के सामने खड़ा करके तीर चलाता था। उसे तीर चलाने का इतना अच्छा अभ्यास हो गया था कि देखनेवाले घबड़ा जाते थे। वे दिल थामकर देखते थे, पर सभी तीर उसकी पत्नी के आसपास जाकर लगते थे, उसे कभी एक भी तीर नहीं लगा। एक बार दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि उस व्यक्ति के भाव अपनी पत्नी को जान से मारने के हो गये। उसने सोचा कि इस तरह मारेंगे तो पकड़े जायेंगे, अतः अभी मारना ठीक नहीं है। रोज ही तो खेल दिखाते हैं। खेल दिखाते समय एक बाण ही तो चूकना है, अपना काम भी जायेगा और कोई कुछ कहेगा भी नहीं। सभी यही कहेंगे कि इतने वर्ष हो गये थे बाण चलाते, एक बाण चूक गया तो क्या करें? उस व्यक्ति ने अपनी जीवनगाथा में लिखा है-उस दिन मैंने सभी बाण गलत चलाये, पर उसकी जीवनसाथी को एक भी बाण नहीं लग सका। जीवन भर का अभ्यास था, अतः चाहकर भी वह एक भी बाण गलत नहीं चला सका। जो जीवनभर संयम का निर्दोष पालन करता है, उसका समाधिमरण अच्छा होता है। सभी को सदा समाधिमरण की भावना भाना चाहिये और अपने नियम-संयम का निर्दोषतापूर्वक पालन करना चाहिये। निरतिचार सल्लेखना का फल बताते हुए आचार्य समन्तभद्र महाराज कहते हैं कि निःश्रेयसमभ्युदयं निस्तीरं दुस्तरं सुखाम्बुनिधिम् । निः पिबति पीतधर्मा सर्वेर्दुःखैरनालीढः ।। धर्म रूपी अमृत का पान करनेवाला सल्लेखनाधारी समस्त दुःखों से रहित होता हुआ अपार दुस्तर, उत्कर्षशाली सुख के सागर स्वरूप मोक्ष को पाता है। 0 7130
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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