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________________ बड़े दुःखी हुये। सब एक-एक करके राज्य छोड़ने लगे। रास्ते में सैकड़ों लोग सिर पर अपना-अपना सामान उठाये पैदल जा रहे थे। सभी के चेहरे उदास थे। जो सम्पदा छोड़कर जाना पड़ रहा था, उसके लिये सभी दुःखी थे और मजा ये था कि जो सम्पदा अपने सिर पर रखे थे उसका बोझ भी कम पीड़ादायक नहीं था, पर जो छूट गया था, उसकी पीड़ा ज्यादा थी। _हम सभी के साथ भी ऐसा ही है। हमें जो प्राप्त है, उसका बोझ इतना है कि झेला नहीं जाता, परन्तु जो प्राप्त नहीं है, उसकी पीड़ा बहुत है। अचानक लोगों ने देखा कि उस भीड़ में एक व्यक्ति ऐसा भी है जो सबकी तरह दुःखी नहीं है, बल्कि आनंदित है। लोगों ने सोचा कि शायद कोई बेशकीमती सामान साथ में लाया होगा, इसलिये खुश है। पर मालूम पड़ा कि वह तो खाली हाथ है। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और दया भी आई कि बेचारे के पास कुछ भी नहीं है। किसी के पास कुछ भी न हो और वह आनंदित हो, तो लोगों को सहसा विश्वास नहीं होता। लोगों ने पूछा कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। तुम कुछ भी नहीं लाये? उसने कहा कि जो मेरा है, वह सदा से मेरे साथ है। लोग जरा मुश्किल में पड़ गये। लोगों ने सोचा कि सम्पदा छूट जाने से शायद इसका दिमाग गड़बड़ा गया है। सचमुच, अगर कोई सब छोड़ दे और आनंदित होकर जीवन जिये, तो अपन को लगता है कि इसका दिमाग ठिकाने नहीं है। त्याग बगैरह की बातें पागलपन-सी लगती हैं। और मजा ये है कि आवश्यक चीजों का संचय करना और उसके संरक्षण की चिंता रखना बुद्धिमानी जान पड़ती है। उस व्यक्ति ने कहा- मेरी निजी सम्पदा आत्मशान्ति और संतोष है, जो सदा मेरे साथ है। जिसके छिन जाने, लुट जाने या खो जाने का भय मुझे जरा भी नहीं है। जो खो जाये या जिसे छोड़ना पड़े, वह निजी 695 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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