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________________ वाचन हो, किन्तु वाचन से भी अधिक महत्वपूर्ण पाचन हो। ऐसा वाचन, जो हमारे जीवन के रग-रग में उतर जाये, उसके साथ एकीभूत हो जाये। जो छेदने से छिदे नहीं, भेदने से भिदे नहीं, तोड़ने से टूटे नहीं, फोड़ने से फूटे नहीं, ऐसा वाचन कार्यकारी है। भोजन वही लाभकारी है, जो पच जाये। यदि एक किलो घी खा लिया जाये और व्यायाम न किया जाये, तो मृत्यु का साक्षात् निमंत्रण है। भोजन से पाचन हो, वह भोजन विभिन्न धातुओं रूप बनता हुआ वीर्यरूप परिणत हो जाये, तभी श्रेष्ठ है। द्रोणाचार्य कौरव और पाण्डवों के गुरु थे। सभी को शिक्षा देने के उपरान्त उन्होंने एक दिन परीक्षा लेनी चाही। बोले- “मुझे गुरुदक्षिणा दो।"सभी कौरव और पाण्डव तैयार थे गुरुदक्षिणा देने के लिए बोले"माँगो, महाराज।" गुरु द्रोणाचार्य ने कहा- "गुरुदक्षिणा के रूप में एक पाठ मुझे सुनाओ, जो मैं तुम्हें देता हूँ।" कई राजकुमार तुरन्त ही यह पाठ सुनाने को तैयार हो गये। बोले, “सुन लो महाराज! अभी।" दूसरे दिन सभी कौरव और पाण्डव यह पाठ सुनाने के लिये तैयार थे, किन्तु धर्मराज युधिष्ठिर ने समय माँगा। सबने पाठ सुना दिया, किन्तु गुरु महाराज का मुखकमल मुरझाया हुआ था। धर्मराज छ: माह तक समय माँगते रहे और तब उन्होंने कहा, “अब मैं पाठ सुना सकता हूँ गुरुवर।" द्रोणाचार्य की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी। उन्होंने धर्मराज की पीठ थपथपायी और बोले, "तू ही केवल एक शिष्य है। तूने ही विद्या के मर्म को समझा है।" तो वाचन इतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना पाचन है। वाचन जीवन में उतरना चाहिए, यही सच्ची प्रभावना है। वही मार्ग, जिसके द्वारा आदमी शुद्ध-बुद्ध बने। उस सत्यमार्ग, मोक्षमार्ग की प्रभावना ही "मार्गप्रभावना' या "धर्मप्रभावना" कहलाती है। "मग्यते येन यत्र वा सः मार्गः, अर्थात् जिसके द्वारा खोज की जाये 06040
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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