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________________ उसे मार्ग कहते हैं। जिस मार्ग के द्वारा अनादि से भूली वस्तु का परिज्ञान हो जाये, जिस मार्ग से उस आत्मतत्त्व की प्राप्ति हो जाये, आत्मा शुद्ध - बुद्ध बन जाये, उस मार्ग की प्रभावना ही "मार्गप्रभावना" कहलाती है। आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने 'समयसार' प्राभृत में एक गाथा लिखी है, जिसका अर्थ है- "विद्यारूपी रथ पर आरूढ़ होकर, मन के वेग को रोकते हुये जो व्यक्ति चलता है, वह बिना कुछ कहे जिनेन्द्र भगवान् की प्रभावना कर रहा है। अपने आचरण को आगम के अनुरूप बनाओ, विषय - कषायों पर नियन्त्रण करो । एक उदाहरण है- एक के बाद एक सैकड़ों भेड़ें चली जा रही थीं । एक गड्ढे में एक भेड़ गिरी तो पीछे चलने वाली दूसरी गिरी, तीसरी भी गिरी और इस तरह सभी भेड़ें उस गड्ढे में गिर गईं। उनके साथ एक बकरी भी थी, किन्तु वह नहीं गिरी, क्योंकि वह भेड़ों की सजातीय नहीं थी। इसी तरह झूठ हजारों हैं, जो एक-न- एक दिन गिरेंगे, किन्तु सत्य केवल एक है, अकेला है । उस सत्य की प्रभावना के लिये कमर कसकर तैयार हो जाओ। सत्य की प्रभावना तभी होगी, जब हम स्वयं अपने जीवन को सत्यमय बनायेंगे । वास्तव में निर्दोष रूप से मोक्षमार्ग पर चलते जाना ही मोक्षमार्ग की प्रभावना है। धर्म की प्रभावना करना सम्यग्दर्शन का एक अंग है। सभी को अपनी शक्ति अनुसार ज्ञान, वैभव, तप आदि के माध्यम से जिनधर्म की प्रभावना अवश्य करना चाहिए । जटायु पक्षी ने सीता जी को रावण के चंगुल से बचाने का पूरा प्रयास किया। अन्तिम समय तक रावण से संघर्ष किया। पंख कट जाने से जमीन पर गिर गया। जटायु अच्छी तरह जानता था, कि एक मच्छर एक हाथी का क्या बिगाड़ सकता है ? लेकिन परेशान तो कर ही सकता है । 605 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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