SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ने कहा- “राजन्! आप जैनधर्म के परमभक्त हैं और धर्म के ऊपर मथुरा नगरी में संकट आया है, वह दूर करने में आप समर्थ हैं। धर्मात्माओं को धर्म की प्रभावना का उत्साह होता है। तन से, मन से, धन से, ज्ञान से, विद्या से, सर्व प्रकार से वे जिनधर्म की वृद्धि करते हैं और धर्मात्माओं का कष्ट निवारण करते हैं।" दिवाकर राजा को धर्म का प्रेम तो था ही, मुनिराज के उपदेश से उसे और भी प्रेरणा मिली। मुनिराज को नमस्कार करके तुरन्त ही उर्मिला रानी के साथ सभी विद्याधर मथुरा नगरी आ पहुंचे। उन्होंने बड़े जोरों की तैयारी के साथ बड़ी धूमधाम से जिनेन्द्र भगवान् की शोभायात्रा निकाली। हजारों विद्याधरों के प्रभाव को देखकर राजा और बुद्धदासी भी आश्चर्यचकित हो गये और जिनधर्म से प्रभावित होकर आनन्दपूर्वक उन्होंने जैनधर्म स्वीकार करके अपना कल्याण किया तथा सत्य धर्म की प्रेरणा के लिए उर्मिला रानी का उपकार माना। __उर्मिला रानी ने उन्हें जिनधर्म की एवं वीतरागी देव-शास्त्र-गुरु की अपार महिमा समझायी। मथुरा नगरी के हजारों जीव भी ऐसी महान धर्म प्रभावना देखकर आनन्दित हुए और बहुमानपूर्वक जिनधर्म की उपासना करने लगे। इस प्रकार वज्रकुमार मुनि और उर्मिला रानी द्वारा जिनधर्म की महान् प्रभावना हुई। हमें भी सर्व प्रकार तन-मन-धन से, ज्ञान से, श्रद्धा से, धर्म पर आये हुये संकट का निवारण करके, धर्म की महिमा प्रसिद्ध करना चाहिए। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है- प्रभावना का मतलब वचन मात्र नहीं। प्रभावना माने 'प्रकृष्ट भावना' । ऐसी भावना, जो जीवन में उतर जाये, जो जीवन का अभिन्न अंग बन जाये। यही प्रभावना है और ऐसी प्रभावना पाषाण को भी भगवान् बना देती है। पाषाण-मूर्ति मुक्तिपथ में हमारी प्रेरणास्रोत बन जाती है। 10 603_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy