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________________ आशीर्वाद देने में क्या परिश्रम करना पड़ता है? मात्र इतना ही तो कहना पड़ता है कि पुत्र! तेरी मनोकामना पूर्ण हो। माँ करीब दस मिनट तक सोचती रही, फिर बोली- उस आले में चाकू रखा है, उसे उठा ला। उस समय विवेकानन्द ने विचार किया-क्या रहस्य है? समझ में नहीं आया। वातावरण बदल गया। विवेकानन्द चाकू उठा लाये और ज्यों ही माँ के हाथ में दिया, त्यों-ही माँ ने कहा- "तेरी मनोकामना पूर्ण होगी। मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है। सफलता में कोई सन्देह नहीं।' विवेकानन्द चकित रह गये। माँ ने कहा- मैंने परीक्षा ली थी, जिसमें तुम पास हुये । चाकू का फलक मैंने तुम्हारी ओर देखा और मूठ (लकड़ी का भाग) मेरी ओर। किसी भी जीव की भावना को ठेस (धक्का) न लगे, यही अहिंसा धर्म है, वात्सल्य है। वात्सल्य की गहराई को समझने वाला व्यक्ति स्वयं को कठिनाई में डालकर भी दूसरों को अपने द्वारा कोई कष्ट नहीं होने देना चाहता है। आचार्य समन्तभद्र महाराज ने वात्सल्य अंग का वर्णन करते हुये लिखा है स्वयुथ्यान प्रति सद्भावः सनाथापेत कैत वा। प्रतिपत्तिर्ययथायोग्यं वात्सल्यमभिलप्यते।। साथ में रहने वालों के प्रति सद्भाव रखना, उनके विकास की भावना रखना, निश्छल प्रेम करना, उनका यथायोग्य आदर करना वात्सल्य अंग कहलाता है। हमें सभी के प्रति वात्सल्य भाव रखना चाहिये। "भावना भवनाशिनी और भावना भववर्धिनी" होती है। हमारी श्रेष्ठ भावनायें ही सबका कल्याण करने वाली, सुख-शान्ति देने वाली होती हैं। हमारे भावों का प्रभाव वृक्षों आदि पर भी पड़ता है। एक बार इंग्लैण्ड के बादशाह ने अपनी राजसभा में सभासदों से प्रश्न किया- भारत के बादशाह ज्यादा क्यों जीते हैं? मंत्री आदि ने अनेक 576 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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