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________________ . प्रेस वात्सल्य अंग वात्सल्य का अर्थ होता है- प्राणीमात्र के प्रति प्रेम का भाव, करुणा का भाव, मैत्री का भाव, आत्मीयता का भाव। जिस प्रकार एक माँ का प्रेम पुत्र के प्रति होता है, उसी प्रकार यह प्रेम धर्मात्मा का धर्मात्मा के प्रति होता है। वात्सल्यधारी की निगाहें कर्मों की ओर नहीं, गुणों की ओर ही जाती हैं। जिस प्रकार माँ को अपना काला बच्चा भी सबसे सुन्दर नजर आता है; उसी प्रकार वात्सल्यधारी को भी दूसरे के सुन्दर गुण ही नजर आते हैं। वात्सल्य अंग सम्यग्दृष्टि का एक प्रमुख अंग है। वात्सल्य का आत्मा से गहरा सम्बन्ध है। वात्सल्य की गहराई को समझनेवाला व्यक्ति सभी के प्रति सद्भावना व निश्छल प्रेम रखता है। वह स्वयं को कठिनाई में डालकर भी दूसरों को अपने द्वारा कोई कष्ट नहीं होने देना चाहता। स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के लिये जा रहे थे। उनकी यात्रा अहिंसा सिखाने, प्रत्येक प्राणी को सुख की अनुभूति कराने के प्रयोजन से थी। स्वामी विवेकानन्द यात्रा के पूर्व माँतुल्य गुरुपत्नी शारदा के पास आशीर्वाद प्राप्त करने गये तथा बोले- माँ! गुरु आज्ञा पूर्ण करने जा रहा हूँ | अतः आपका आशीर्वाद परम आवश्यक है। पर माँ ने जैसे विवेकानन्द का एक भी शब्द न सुना हो। आशीर्वाद में विलम्ब देखकर विवेकानन्द ने कहा- माँ! आशीर्वाद में विलम्ब क्यों? माँ ने कहा- विवेक! अभी आशीर्वाद देने का अवसर नहीं है। विवेकानन्द ने कहा- माँ! ऐसी क्या बात है? 20 575_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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