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________________ सदर्शन महारत्नं विश्वलोकैक भूषणम् । मुक्ति-पर्यन्त कल्याणदानदक्षं प्रकीर्तितम् ।। यह सम्यग्दर्शन महारत्न समस्त लोक का आभूषण है और मोक्ष होने पर्यन्त आत्मा को कल्याण देने वाला चतुर है। अत्यल्पमणि सूत्र दृष्टि पूर्व यमादिकम् । प्रणीतं भवसम्भूतक्लेश प्राभार भेषजम् ।। 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' ग्रंथ में लिखा है सम्यक्त्व सब रत्नों में महारत्न है, सब योगों में उत्तम योग है, सब ऋद्धियों में महाऋद्धि है। अधिक क्या? सम्यक्त्व ही सब ऋद्धियों को करनेवाला है। सभी शास्त्रों में सम्यग्दर्शन की महिमा गायी गई है वस्तुतः सम्यग्दर्शन वह पारसमणि है जिसके संसर्ग से लोहतुल्य भी ज्ञान और चारित्र स्वर्णवत् सम्यक्पने को प्राप्त हो जाते हैं। (पंचाध्यायी) जिस सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान मिथ्याज्ञान और चारित्र मिथ्याचारित्र हुआ करता है तथा प्राप्त हुआ मनुष्यजन्म भी अप्राप्त हुये के समान है, ऐसा सुख का स्थानभूत, मोक्षरूपी वृक्ष का अद्वितीय बीज तथा समस्त दोषों से रहित सम्यग्दर्शन जयवन्त हो। (पं.प.वि.) समस्त उपायों से, जिस प्रकार भी बन सके वैसे, सम्यग्दर्शन प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये। इसके प्राप्त होने पर अवश्य ही मोक्षपद प्राप्त होता है और इसके बिना सर्वथा मोक्ष नहीं होता। यह स्वरूप की प्राप्ति का अद्वितीय कारण है, अतः इसे अंगीकार करने में किंचित् मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिये। (पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय) सम्यग्दर्शन को जब यह जीव प्राप्त हो जाता है, तब परम सुखी हो जाता 0 51 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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