SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RE सम्यग्दर्शन की महिमा 'धर्मामृत' ग्रन्थ में आचार्य जयसेन महाराज ने सम्यग्दर्शन की महिमा का वर्णन करते हुये लिखा है- बिना सम्यग्दर्शन के मनुष्य की शोभा नहीं है। जिस प्रकार सेना हो, किन्तु सेनापति न हो, तो सेना शोभारहित होती है। शक्ति बिना शरीर की शोभा नहीं होती, जड़ बिना वृक्ष की शोभा नहीं होती, जल के बिना कुँए की शोभा नहीं होती, आँख के बिना मुख की शोभा नहीं होती, जिस प्रकार बिना धुरी के गाड़ी चलने में समर्थ नहीं होती, बिना तेल के जिस प्रकार दीपक प्रकाश नहीं देता, उसी प्रकार सम्पूर्ण जगत के मानवों की शोभा सम्यग्दर्शन के बिना नहीं है। सम्यग्दर्शन नाव के समान है। उसका आश्रय छोड़कर जो जीव केवल चारित्र पालता है, वह मुक्त नहीं होता। जैसे नौका का आश्रय छोड़कर नदी को पार नहीं किया जा सकता। इस जगत में सम्यक्त्व के समान और कोई गुण नहीं है। इसको प्राप्त करके मनुष्य संसार का विनाश करता है। सम्यग्दर्शन के बिना कदापि मुक्ति नहीं हो सकती। सम्यक्त्व-रहित जीव चारित्र के बल से नवग्रैवेयक तक जाता है, परन्तु वह भव-भ्रमण से पार नहीं हो पाता। ____ पाप के वशीभूत होकर जीव संसार में परिभ्रमण करते हुये स्व और पर का ज्ञान करने का अवसर प्राप्त न होने के कारण अभी तक निजात्म-सुख का उपाय ढूँढ़ रहे हैं, जो कि उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है। इसलिये जो भव्य जीव चतुर्गतिक पाप से मुक्त होकर, सुख के आगर मोक्षरूपी वैभव को प्राप्त कर सदा सुखमय रहना चाहता है, ऐसे भव्य जीव को परम आदर के साथ शुद्ध सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लेना चाहिये । आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने लिखा है 50
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy