SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है और जब तक उसे प्राप्त नहीं करता है, तब तक दुःखी बना रहता है। (र.सा.) वस्तुतः सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान, चारित्र, तप आदि यथेष्ट फलदायक नहीं होते। सम्यग्दर्शन तो रत्नत्रय का सार है, सुख का निधान है तथा मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान है। अपनी आत्मा का जैसा शुद्ध चैतन्यमात्र स्वरूप है, वैसा माना जाये और उसी में रमण किया जाये, बस, यही मोक्ष का रास्ता है। सम्यग्दर्शन की महिमा बतलाते हुए ‘जीवकाण्ड' एवं 'रत्नकरंड श्रावकाचार' (31-41 तक) में कहा है दुर्गतावायुषो बन्धे सम्यक्त्वं यस्य जायते। गतिच्छेदो न तस्यास्ति तथाप्यल्पतरा स्थितिः ।। हेटि मछप्पुढवीणं जे इसिवणभवण सव्वइत्थीणं। पुण्णिदरे ण हि सम्मो ण सासणे णारयापुण्णे।।27 || जी.का. ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन श्रेष्ठता को प्राप्त होता है, इसलिये मोक्षमार्ग में उसे कर्णधार (खेबटिया) कहते हैं। जिस प्रकार बीज के अभाव में वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि एवं फल की प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के अभाव में सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि एवं फल की प्राप्ति नहीं होती। ___ निर्मोही, मिथ्यात्व से रहित सम्यग्दृष्टि गृहस्थ तो मोक्षमार्ग में स्थित है, परन्तु मोहवान मिथ्यादृष्टि मुनि मोक्षमार्ग में स्थित नहीं है। मोही मुनि की अपेक्षा निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ है। सम्यग्दर्शन से शुद्ध पूर्वबद्धायुष्क मनुष्य व्रत रहित होने पर भी नरक और तिर्यंचगति, नपुंसक, स्त्री, नीच कुल, विकलांग, अल्पायु एवं दरिद्रता को प्राप्त नहीं होता। यदि सम्यग्दर्शन प्राप्त होने के पहले किसी मनुष्य ने नरकायु का बंध कर लिया है, तो वह पहले नरक से नीचे नहीं जाता है। यदि तिर्यंच या मनुष्यायु का w 52 a
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy