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________________ जो व्यवहार और निश्चय दोनों नयों को अच्छी तरह समझकर किसी भी नय का पक्षपाती न होकर मध्यस्थ होता है, वही उपदेश प्राप्त करने के लिये योग्य है। हठग्राही, पक्षपाती उपदेश का पात्र नहीं है। पंडित श्री दौलतराम जी ने लिखा है"सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण-शिवमग, सो द्विविध विचारो। जो सत्यारथ रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो।" मोक्षमार्ग के स्वरूप का दो प्रकार से विचार करना चाहिये। जो वास्तविक मोक्षमार्ग है, वह 'निश्चय' मोक्षमार्ग कहलाता है और जो ‘निश्चय' मोक्षमार्ग की प्राप्ति में कारणभूत है, वह 'व्यवहार' मोक्षमार्ग कहलाता है। जिनवाणी में कहीं निश्चय की अपेक्षा से कथन किया गया है और कहीं व्यवहार की अपेक्षा से । जहाँ जिस अपेक्षा से कथन किया गया हो, उसे उसी अपेक्षा से समझना चाहिए। पंडित बनारसीदास जी ने लिखा हैजो बिन-ज्ञान क्रिया अवगाहै, जो बिन-क्रिया मोखपद चाहै। जो बिन-मोख कहै मैं सुखिया, सो अजान मूढ़नि में मुखिया।। मूों के सरदार तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो बिना ज्ञान के क्रियायें करते हैं। दूसरे वे जो बिना ‘चारित्र के मोक्ष हो जायेगा' ऐसा मानते हैं। तीसरे वे जो कहते हैं कि हम तो यहीं पर सुखी हैं, मोक्ष में जाने की क्या जरूरत है? जो लोग यह कहते हैं कि मोक्ष के बिना भी सुख है, यानि स्वर्गों में सुख है, पैसों में सुख है, वे मूर्तों के सरदार हैं। जिनको समझ में आ गया है कि संसार में दुःख-ही-दुःख है, कहीं भी सुख नहीं है, उन्हें मोक्षमार्ग पर लगने के लिये कहा जा रहा है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की एकता मोक्षमार्ग है। जो इस त्नत्रय को धारण करता है, उसका कल्याण होता है, उसे अनन्तसुख की प्राप्ति होती है। 0 490
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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