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________________ देखता है तो दूसरी तरफ जल भ्रम से जाता है, पर वहाँ भी जल नहीं मिलता। इस तरह बहुत बार भ्रम में भटकते रहने पर भी उसको जल नहीं मिलता है। अन्त में वह प्यास की बाधा से तड़प-तड़प कर प्राण दे देता है। यही हाल संसारी प्राणियों का है। सभी जीव सुख चाहते हैं, निराकुलता चाहते हैं। भ्रम यह हो रहा है कि इन्द्रियों के भोग करने से सुख मिल जायेगा, तृप्ति हो जायेगी । इसलिये यह प्राणी पाँचों इन्द्रियों का भोग बार-बार करता है, परन्तु उसे तृप्ति नहीं मिलती । जैसे खाज को खुजाने से खाज का कष्ट और बढ़ जाता है, वैसे ही इन्द्रिय-भोगों को जितना भोगा जाता है उतनी ही अधिक तृष्णा बढ़ जाती है। तृष्णा ही क्लेश है, बाधा है, चिंता का कारण है । मनुष्य का शरीर तो पुराना पड़ता जाता है, इन्द्रियों की शक्ति घटती जाती है, परन्तु भोगों की तृष्णा दिन दूनी रात त - चौगुनी बढ़ती जाती है । जब यह प्राणी तृष्णा होते हुये भोगों को असमर्थता के कारण भोग नहीं सकता है तो उसे बड़ा दुःख होता है । वृद्धों से पूछा जावे कि जन्म भर तक आपने इन्द्रियों के भोग भोगे, इनसे अब तो तृप्ति हो गई होगी? तब वे वृद्ध यदि सम्यग्दृष्टि आत्मज्ञानी नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा हैं, तो यही जवाब देंगे कि यद्यपि विषयों के भोग की शक्ति नहीं है, शरीर निर्बल है, दांत गिर गये हैं, आँखों से दिखता नहीं है, कानों से सुनाई नहीं देता, हाथ-पैरों में शक्ति नहीं है, तथापि पाँचों इन्द्रियों के भोगों की तृष्णा तो पहले से बहुत बढ़ी हुई है । यह वस्तु का स्वभाव है कि इन्द्रियों के भोगों से तृष्णा बढ़ती ही जाती है, कभी तृप्ति नहीं होती है। यह जीव अविनाशी है, अनादि-अनन्त है। चारों गतियों में भ्रमण करते हुये इसने अनन्त जन्म कभी एकेन्द्रिय के, कभी द्विन्द्रिय के, कभी त्रीन्द्रि के कभी चौन्द्रिय के, कभी पंचेन्द्रिय के, पशु के, मानव के, देव के, नारकी के धारण किये हैं तथा नरक के सिवाय तीन गतियों में यथासंभव पाँचों इन्द्रियों के भोग भी भोगे हैं, परन्तु आज तक 4932
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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