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________________ की हैं- अपने पर घटाना है, जिससे अपने को अशान्ति न आये, ऐसा ज्ञान करना अपना परम कर्तव्य है। मरण का भय अज्ञानी मोही जीवों को सताता है, 'हाय! मैं मरा, मेरा लड़का छूटा, मेरे नाती-पोते छूटे। कितने आराम का घर बनाया था जो छूट रहा है। कितनी घबड़ाहट की स्थिति है उस समय अज्ञानी के लिए। पर ज्ञानीजीव सोचता है कि मरण क्या है? मैं तो यहाँ हूँ, लो यहाँ से दूसरी जगह चला। मेरा तो अन्य कुछ न था और न ही हो सकता है। मैं ही अपने स्वरूप में सदा परिणमता रहता हूँ। ऐसे जाननहार योगी पुरुष को मरण का भय नहीं रहता। ___ यदि भय से और संक्लेश से छुटकारा पाना है, तो कर्तव्य यह है कि हम अपने आपके यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान करें और उसकी ही श्रद्धा रखें। ज्ञानी पुरुष को मरणभय नहीं है। क्यों नहीं है? वह जानता है कि जो मेरा है, वह मेरे से कभी बिछुड़ नहीं सकता और जो मेरा नहीं है, वह इस जीवन में भी मुझसे बिछड़ा हुआ ही है। एक घर में 10 आदमी रहते हैं। उनमें से कछ ऐसे भी होते हैं कि एक दूसरे का मन बिल्कुल नहीं मिलता है, अत्यन्त विपरीत विचार रहते हैं। वे घर में रहते हुए भी बिछुड़े हुए ही हैं जबकि रह रहे हैं एक घर में। जब स्वरूप नहीं मिलता, विचार नहीं मिलता, तब संयोग क्या? यों ही यद्यपि इस समय शरीर भी लगा है, किन्तु इस आत्मा का स्वरूप इससे मिलता ही नहीं है। यह मैं अत्यंत भिन्न हूँ अन्य सब चेतन-अचेतन पदार्थों से। तो निकट रहता हुआ भी यह सब बिछुड़ा ही है। इसमें आता ही नहीं कुछ। फिर जो बिछुड़ गया, उसका क्या खेद? एक कुँजड़ा-कुँजड़ी थे। दोनों बूढ़े थे। कुँजड़ा ऊँट पर सवार होकर रोजगार को जाया करता था। वह बुढ़िया उस बुड्ढ़े से जला करती थी। उस बुढ़िया का मन उस बुड्ढे से न मिलता था, सो रोज-रोज दोनों में लड़ाई हुआ करती थी । अचानक ही एक दिन बुड्ढ़ा गुजर गया, तो लोग कहते हैं कि ऐ बुढ़िया! अब तो तेरा बुड्ढ़ा गुजर गया। अब क्या करेगी ? बुढ़िया कहती है'अरे! वह सरग में तो चढ़ा ही रहता था, थोड़ा-सा और ऊपर चला गया।' सरग के मायने है ऊँट । ऊँट पर तो चढ़ा ही रहता था, थोड़ा-सा और चढ़ cu 468 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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