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________________ राग करने से तो आकुलताएँ ही बनती हैं। पास हुई चीज में भी राग नहीं करना चाहिए। फिर यदि न- हुई चीज में राग-द्वेष बना रहे, तो यह बड़े खेद की बात है। इस मोही जीव को देख लो कि चीज के न होते हुए भी इसे उनसे राग होता है, आकुलताएँ बनी रहती हैं। ऐसी आकुलताओं से हटने का उपाय है वस्तुस्वरूप का सम्यग्ज्ञान करना । मिली हुई चीज हो या न हो, यह जीव तो ख्याल बना करके राग बना लेता है, सो यदि हिम्मत बन सके, तो इन ख्यालों को छोड़ने से ही सुखी हो सकते हो । शुद्धात्मानं विहायान्यचिन्ता पापोदयस्ततः । अन्यचिन्तां पृथक्कृत्य स्यां स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम्।। 4-33।। एक शुद्ध निज आत्मा का चिंतन हो, यह तो है विवेक की बात और अपने आत्मतत्त्व को छोड़कर अन्य किसी चीज की चिंता न हटी, तो यह है पाप का उदय। चिंताओं से आत्मा को कोई लाभ नहीं है । चिंताओं से बुद्धि भी बिगड़ती है । सो अन्य चिंताओं के वातावरणों से दूर होने पर ही कुछ लाभ मिल सकेगा। यदि चिंता ही करना है, तो अपने आत्मस्वरूप की चिंता करो कि मैं ज्ञानस्वरूप हूँ, आनन्दमय हूँ । केवल दृष्टि के फेर से सारे संकट छा गये हैं। सो बाह्यदृष्टि को मिटाओ, शुद्ध दृष्टि करो, तो ये सारे संकट समाप्त हो जावेंगे। सो इस अपने ज्ञानस्वरूप को संभाल कर रखूँ, इस आत्मा को ही अपना रक्षक बनाऊँ, तो इस तरह की भावनाओं से, पुरुषार्थ से चिंताएँ दूर हो सकती हैं। यह लड़का अच्छी तरह से रहे, दुकान अच्छी तरह से चले, समाज और राष्ट्र के मैं कुछ काम कर डालूँ तथा अन्य - अन्य विषयक भी चिंताएँ होती हैं। ये चिंतायें सब पाप के उदय के कारण होती हैं व पाप का बंधन कराने वाली हैं, जिससे भविष्य में पापोदय होगा व क्लेश होगा । अतः बाह्य दृष्टिको मिटाओ। बाह्य दृष्टि ही चिंताओं का कारण है। एक गाँव में एक युवक रहता था। वह बड़ा बलवान् था। राजा का हाथी जब निकलता था तो हाथी के पैरों में बंधी हुई साँकल को वह पैरों से दबा देता था, तो हाथी की सांकल पर पैर रखकर हाथी को रोक लेता था । इसको बहुत चिंता नहीं है, इससे एक ऐसा बलवान है कि यह हाथी को खड़ा कर लेता है। 430 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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