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________________ सुख तो एक परम समाधि दशा में है। सबसे हट गये, विकल्पों से परे हो गये, ज्ञानज्योति मात्र अपना अनुभव कर लिया, तो समझो कि आनन्द का मार्ग मिल गया। आनन्द परवस्तु से नहीं मिलेगा। राग छोड़ दो, तो आनन्द मिल जायेगा । तुम्हारे माँ-बाप कितना तुम्हारे पीछे खर्चा कर रहे हैं? वे सारे कष्ट तुम्हारे पीछे उठा रहे हैं, तो उनका तुम्हारे प्रति राग है, इसी से उनमें आकुलताएँ तो राग से ही हैं। यदि राग न हो, तो आकुलताएँ ही क्यों हों ? एक देहाती था । उसका लड़का शहर में किसी कालेज में पढ़ता था। वह लड़का बोर्डिंग हाउस में रहता था । उसके पिता ने सोचा कि चलें, लडके से मिल आवें, कुछ नाश्ता वगैरा दे आवें, पैसे दे आयें । सो वह घुटनों तक धोती पहिने, तनीदार मिर्जाई पहिने और सिर पर एक साफा बाँधकर कालेज गया। बोर्डिंग हाउस के लड़कों से बुलवाया कि फलॉ नाम का एक लड़का है, उसको बुला दीजिए। अब वह लड़का आ गया। साथ में चार-छः जो दोस्त थे, वे भी आ गये। वे तो सब अच्छे पोशाक से, वेश-भूषा से आए, कोट, पैंट, बूट, टाई लगाकर और उसका पिता उसी देहाती सूरत में मिलने आया। अब दोस्त पूछने लगे कि कहो मित्र! ये तुम्हारे कौन हैं ? जो खाना-पीना भी लाये हैं? सो वह शान में आकर बोला कि यह तो हमारा मुनीम है, चाकर है। इतनी बात सुनकर बाप का मन लड़के से हट गया। उसने सोचा कि यह मेरा लड़का होकर भी मुझे नौकर बताता है । तबसे उस बाप ने लड़के की कोई खबर नहीं ली। पिता का तभी से उस लड़के के प्रति जो राग था, वह दूर हो गया । जब तक राग है, तब तक बंधन है और जहाँ राग छोड़ दिया, तभी बंध कान छूट गया। ज्ञान की बातें यदि उपयोग में नहीं आती हैं, मोह / राग के ही चक्कर बने रहे, तो उससे मनोबल मिटता है, वचन बल खत्म होता है, कायबल भी क्षीण होता है और धनबल खत्म होता है। किसी से राग करने में आत्मा की प्रगति नहीं है। सो, भाई ! जिन पदार्थों का संयोग है, उसका राग हेय | जो चीज पास में नहीं है, इसका क्या राग करना? जो चीज पास में है, उनका भी राग नहीं करना चाहिए | पास है, तो होने दो। राग करने से लाभ कोई नहीं है। DU429 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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