SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानी पुरुष इन विषयसुखों पर लात मार देते हैं। जैसे कोई रईस का बालक है। छोटी ही अवस्था में उसका पिता गुजर जाय तो सरकार उसकी जायदाद को कोर्ट ऑफ वार्ड्स कर लेती है और लड़के को 500 रु. महीना या कुछ भी हो खर्चा बाँध देती है। मानो 50 लाख की सम्पदा सरकार ने ले ली है। उस लड़के का पालन-पोषण सरकार ही करती है। पर लड़का जब 14 वर्ष का हुआ, 16 वर्ष का हुआ तो वह सोचता कि 500रु. महीना खर्च मिलता है, सरकार बड़ी दयालु है। उसे अभी तक पता नहीं कि मेरी लाखों की सम्पत्ति सरकार ने ले ली है। और जब 18-19 वर्ष का हुआ, तो वह यह जानकर कि मेरी लाखों की जायदाद सरकार लिए हुए है, सरकार को नोटिस दे देता है कि मैं बालिग हो गया हूँ, मेरी जायदाद मुझे वापस कर दी जाये। वह सोचता है कि मेरी जायदाद अधिक है। यह जो सरकार 500 रुपये महीना भेजती है, उसकी मुझे जरूरत नहीं है। मेरी जायदाद सरकार मेरे सुपुर्द कर दे। जब वह अपनी जायदाद अपने कब्जे में कर लेता है, तब वह जायदाद को देखकर खुश रहता इसी तरह जगत् के जीवों की अनन्त आनन्द की विभूति है, मामूली नहीं, क्योंकि स्वयं ही आनन्द से भरा इस जीव का स्वरूप है। 'आनन्दं ब्रह्मणो रूपम् ।' ज्ञानी संत पुण्यकर्म सरकार द्वारा हड़पे गये वैभव को ही चाहता है अर्थात् उन कर्मों के उदयकाल में सुखाभास मिलता है, उसमें रुचि करने से आत्मीय आनन्द सब निकल जाता है। उसका घाटा हो गया विषय-प्रेम में । जब तक उस जीव के मिथ्यादृष्टि है, तब तक वह मानता है कि मुझे कर्मों की कृपा से ही सारा वैभव मिला, सारा सुख मिला। अगर यह जीव मिथ्यादृष्टि है, तो वह इधर-उधर ही भटकता रहता है। यदि जीव को सम्यग्दृष्टि हो जाती है, तो यथार्थ ज्ञान हो जाता है, कर्मों को नोटिस दे देता है। वे जीव जिनको सम्यग्ज्ञान हो गया, वे विषय-कषायों को नहीं चाहते। उनकी दृष्टि तो आनन्द वैभव में रहती है, बाहर-ही-बाहर उनकी दृष्टि नहीं रहती है। 427 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy