SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकता है। तभी मनुष्यभव पाने में मुनाफा है, नहीं तो टोटा ही बैठता है। कहते हैं कि जब विषयों की आशा न रहे, आशाओं का त्याग हो, तभी शान्ति मिल सकती है। निर्वाणं भोगवैरस्यं बन्धो भोगेषु गृद्धता। स्वायत्तमेव निर्वाणस्यां स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम्।। 4-20 ।। थोड़े ही शब्दों में यदि कहना हो कि निर्वाण क्या है और बंध क्या है? मुक्ति क्या है और बंधन क्या है? इसका उत्तर है कि भोगों में विरक्तता आ जाय, भोगों से राग हट जाय, तो यही मुक्ति है। और भोगों में आसक्ति आ जाय, तो यही बन्धन है और कोई दूसरा बन्धन नहीं है। आप जकड़े हुए हो। अपने बारे में जैसे कोई विचार करता है कि मुझे झंझट लग गई, इतने बाल-बच्चों में फिक्र बन गई और इतने कामों में झंझट बढ़ गया, इन सब कामों ने मुझे फांस लिया, इन बाल-बच्चों ने मुझे फांस लिया. तो जरा सही तो विचारें कि हमें किसने फांस लिया? आप कहेंगे कि हमें बाल-बच्चों ने फांस लिया, स्त्री ने फांस लिया। नहीं, किसी दूसरे ने नहीं फांसा है। विषयों की जो आशा बना रखी है, जिस विषयवृत्ति के भाव से विवाह किया, उस विषय की इच्छा ने फांसा है, स्त्री ने तझे फांसा नहीं है। आपकी स्त्री ने. आपके बाल-बच्चों ने आपको नहीं फांसा है। आपके विषयकषायों ने ही आपको फांस लिया है। यदि बंधन हटाना है तो कषायों से वैराग्य हो जाये, तब बंधन सुगमतया ही हट जावेगा। इन विषयकषायों में कुछ सार नहीं है, इनमें कुछ हित नहीं है, ऐसा समझो। यही मुक्ति है। जिसके भोग की इच्छा नहीं है, उसके बंधन नहीं है। भोग विरस लगने लगें, यही निर्वाण है। भोगने की आसक्ति आ जाये, अब यही बंधन है। सब जीव अपनी-अपनी परेशानियाँ अनुभव कर रहे हैं। यह क्यों कर रहे हैं? उनको अपने का पता नहीं कि मैं क्या हूँ? मेरा करने का काम क्या है? यह तो सोचा ही नहीं और इन इन्द्रियों के बहकाने में आ गये, मन के कहने में लग गये, बस, परेशानियाँ हो गयीं। इन परेशानियों को मिटाने वाला केवलज्ञान ही है। ज्ञान से परेशानियाँ मिट जाती हैं। अन्य किन्हीं चीजों से परेशानियाँ न मिटेंगी। 0 426_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy