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________________ दुःखों का कारण अन्य पदार्थों में आत्मबुद्धि होना है। परपदार्थ कोई क्लेश के कारण नहीं हैं, किन्तु अपने आप में वस्तुस्वरूप के विपरीत ख्याल बना लें तो उससे दुःख उत्पन्न होता है। परपदार्थ तो पर ही हैं, उनसे मेरे में कोई परणिमन नहीं आता, पर हम ही परबुद्धि बनाकर जो अपना ख्याल बनाते हैं, उस ख्याल से ही क्लेश उत्पन्न होते हैं। आचार्य बार-बार समझाते हैं कि यदि दुःखों से छूटना चाहते हो तो पर को पर मान लो । मगर समझने वाला समझना ही नहीं चाहता तो वे क्या करेंगे? एक कथानक है कि एक अपने गाँव का मुखिया था। किसी सभा मे पंच लोगों की बैठक हुई। कोई बात ऐसी चल उठी, कहा कि 40 और 40 कितने होते हैं? तो वह मुखिया बोला कि 40 और 40 मिलकर 60 होते हैं। तर्क होने लगा । सभी कहें कि 40 और 40 मिलकर 80 होते हैं। उसने कहा- नहीं, 40 और 40 मिलकर 60 होते हैं। लोगों ने बहुत कहा कि 40 और 40 मिलकर 60 नहीं होते हैं। तब मुखिया ने कहा कि 40 और 40 मिलकर 80 हो जायें, तो हम अपनी सब भैंसें दे देंगे। यह बात उसकी स्त्री ने भी सुनी। जब वह घर पहुँचा, तो देखा स्त्री बड़ी उदास बैठी है। मुखिया बोला- तुम उदास क्यों हो? वह बोली- कि तुमने बोला है 40 और 40 मिलकर 60 होते हैं। यदि 40 और 40 मिलकर 60 नहीं होते हैं, तो हम अपनी सब भैंसें दे देंगे। तो अब तो ये बच्चे भूखों मरेंगे। मुखिया बोला- तू बड़ी भोली है। अरे! जब हम अपने मुख से बोल दें कि 40 और 40 मिलकर 80 होते हैं, तभी भैंसें जायेंगीं । देखें वे कैसे भैंसें ले पाते हैं । आचार्य समझाते हुए कहते हैं- जिस सुख-शांति को तू चाहता है, वह तेरे ही पास है, तेरी ही विभूति है, तेरे ही घर में गड़ी है। यदि तू सावधान होकर खोजे, तो तुझे अवश्य मिल जावे । भेदविज्ञान रूपी कुल्हाड़ी काम में लेकर इस सम्पत्ति का स्वामी बनना चाहिये । जब शिष्य का भ्रम दूर हो जाता है और ज्यों ही वह आपको सर्व परद्रव्यों से भिन्न ज्ञाता - दृष्टा आनंदमयी अमूर्तिक परमात्मा के समान सिद्ध, शुद्ध, निरंजन, निः कषाय, निर्द्वन्द्व, निर्भय, अकेला और शान्त अनुभव करता है, तब अनादिकाल की भव - आताप की बाधा शांत हो जाती है और परमस्वाधीन 4042
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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