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________________ इनसे राग हटाना चाहिए। अपने आप से अपने को दुःख नहीं होता, परन्तु पर का संग होने से दुख पैदा होता है। जिसने भी इस एकत्व के रहस्य को समझ लिया, उसका नियम से कल्याण होता है। उसे मुक्ति की प्राप्ति होती है। नमिराय राजा की कथा आती है। उनको दाह ज्वर हो गया था। उनका रोग दूर करने के लिये रानियाँ चन्दन घिस रही थीं। रानियों की चूड़ियों के खनकने की आवाज सुनकर राजा बोला- यह शोर क्यों हो रहा है? मंत्री बोलामहाराज आपका रोग दूर करने के लिये रानियाँ चन्दन घिस रही हैं। राजा को शोर अच्छा नहीं लग रहा था, अतः बोला कि यह शोर बंद करो। रानियों ने एक-एक चूड़ी छोड़कर शेष चूड़ियों को उतार दिया जिससे चूडियों के खनकने की आवाज बंद हो गई। राजा बोला- क्या चन्दन घिसा जाना बंद हो गया है? मंत्री बोला- महाराज! चंदन तो अभी भी घिसा जा रहा है, पर रानियों ने एक-एक चूड़ी छोड़कर शेष चूड़ियों को उतार दिया है। राजा को शोर बंद हो जाने से बढ़ी शांति महसूस हो रही थी। राजा को बात समझ में आ गई। वह एकत्व भावना का चिन्तन करने लगा। वह विचार करने लगा कि एकत्व में ही शांति है। अपने स्वभाव के अलावा जितने भी परभाव हैं, वे ही अशांति के कारण हैं और उस राजा ने सुबह रोग दूर होते ही वन में जाकर दीक्षा लेकर अपना कल्याण किया। आचार्य समन्तभद्र महाराज ने सम्यग्दर्शन का महत्व बताते हुये लिखा है गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहीनैव मोहवान्। अनगारो गृही श्रेयान, निर्मोही मोहिनो मनैः ।। मोह-ममता से रहित गृहस्थ मोक्षमार्ग पर चलने वाला है, किन्तु मोही मुनि मोक्षमार्गी नहीं है, संसारी है। इस कारण निर्मोही गृहस्थ मोही मुनि से श्रेष्ठ है। स्वामी कार्तिकेय महराज ने लिखा है - इक्को जीवो जायदि एक्को गिण्हदे देहं। इक्को बाल जुवाणो इक्को बुड्डो जरा गहिओ।। जीव अकेला ही उत्पन्न होता है अकेला ही माता के उदर में शरीर को ग्रहण करता है अकेला ही बालक होता है, अकेला ही जवान होता है और 0 3080
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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