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________________ एक करोड़पति सेठ था। उसका एक इकलौता बेटा था। वह सातों व्यसनों में पारंगत था। उसके पड़ोस में एक व्यक्ति रहता था। उसका भी एक बेटा था। वह सर्वगुणसम्पन्न, पढ़ने-लिखने में होशियार, व्यसनों से दूर, सदाचारी, विनयशील था। सेठ रोज सुबह उठता तो पड़ोसी के बेटे की भगवान्-जैसी स्तुति करता और अपने बेटे को हजार गालियाँ देता। कहता है-"देखा, यह कितना होशियार है, प्रतिदिन प्रातःकाल मन्दिर जाता है, समय पर सोकर उठता है और एक तू है कि अभी तक सो रहा है। एक दिन पड़ौसी का बेटा स्कूल नहीं गया। उसे घर पर देखकर सेठ ने कहा-"बेटा! आज स्कूल क्यों नहीं गये?" बच्चे ने उत्तर दिया-"मास्टर जी कहते हैं कि स्कूल में ड्रेस पहिनकर आओ और पुस्तकें लेकर आओ। मैं पापा से कहता हूँ तो उत्तर मिलता है कि कल ला देंगे, पर उनका कल आता ही नहीं है। आज एक माह हो गया। अतः आज मैं स्कूल ही नहीं गया हूँ।" पुचकारते हुये सेठ बोला-"बेटा चिन्ता की कोई बात नहीं। अपना वो नालायक पप्पू है न। वह हर माह नई ड्रेस सिलवाता है और पुरानी फेक देता है। पुस्तकें भी हर माह फाड़ता है और नई खरीद लाता है। बहुत-सी ड्रेसें और पुस्तकें पड़ी हैं। उनमें से ले जाओ।" ___ अब जरा विचार कीजिये, सेठ जिसकी भगवान्-जैसी स्तुति करता है, उसे अपने नालायक बेटे के उतारन के कपड़े और फटी पुस्तकें देने का भाव आता है और अपने उस नालायक बेटे को करोड़ों की सम्पति दे जाने का पक्का विचार है। कभी स्वप्न में भी यह विचार नहीं आया कि थोड़ी-बहुत किसी और को भी दे दूँ। यद्यपि पड़ोसी का बेटा अच्छा है, पर वह अपना नहीं है। अतः उसके प्रति राग भी नहीं है और अपना बेटा अच्छा नहीं है, पर वह अपना है, अतः उसके प्रति राग है। आज तक इस आत्मा ने देहादि पर-पदार्थों में ही अपनापन मान रखा है। अतः उन्हीं की सेवा में सम्पूर्णतः समर्पित है। निज आत्मा में एक क्षण को भी 303a
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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